- जसनाथी सम्प्रदाय
संस्थापक – जसनाथ जी जाट
जसनाथ जी का जन्म 1482 ई. में कतरियासर (बीकानेर) में हुआ।
प्रधान पीठ – कतरियासर (बीकानेर) में है।
यह सम्प्रदाय 36 नियमों का पालन करता है।
पवित्र ग्रन्थ सिमूदड़ा और कोडाग्रन्थ है।
इस सम्प्रदाय का प्रचार-प्रसार ” परमहंस मण्डली” द्वारा किया जाता है।
इस सम्प्रदाय के लोग अग्नि नृत्यय में सिद्धहस्त है।, जिसके दौरान सिर पर मतीरा फोडने की कला का प्रदर्शन किया जाता है।
दिल्ली के सुलतान सिकंदर लोदी न जसनाथ जी को प्रधान पीठ स्थापित करने के लिए भूमि दान में दी थी।
जसनाथ जी को ज्ञान की प्राप्ति ” गोरखमालिया (बीकानेर)” नामक स्थान पर हुई।
सम्प्रदाय की उप-पीठे
इस सम्प्रदाय की पांच उप-पीठे है। - बमलू (बीकानेर)
- लिखमादेसर (बीकानेर)
- पूनरासर (बीकानेर)
- मालासर (बीकानेर)
- पांचला (नागौर)
- दादू सम्प्रदाय
संस्थापक – दादू दयाल जी
दादूदयाल जी का जन्म 1544 ई. में अहमदाबाद (गुजरात) में हुआ।
इस सम्प्रदाय का उपनाम कबीरपंथी सम्प्रदाय है।
दादूदयाल जी के गुरू वृद्धानंद जी (कबीर वास जी के शिष्य) थे।
ग्रन्थ -दादू वाणी, दादू जी रा दोहा
ग्रन्थ की भाषा सधुकड़ी (ढुढाडी व हिन्दी का मिश्रण) है।
प्रधान पीठ नरेना/नारायण (जयपुर) में है।
भैराणा की पहाडियां (जयपुर) में तपस्या की थी।
दादू जी के 52 शिष्य थे, जो 52 स्तम्भ कहलाते है।
52 शिष्यों में इनके दो पुत्र गरीब दास जी व मिस्किन दास जी भी थे। - विश्नोई सम्प्रदाय (राजस्थान के प्रमुख संत एवं समुदाय )सस्थापक -जाम्भोजी
जाम्भोजी का जनम 1451 ई. में कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर पीपासर (नागौर) में हुआ।
ये पंवार वंशीय राजपूत थे।
प्रमुख ग्रन्थ – जम्भ सागर, जम्भवाणी, विश्नोई धर्म प्रकाश
नियम-29 नियम दिए।
इस सम्प्रदाय के लोग विष्णु भक्ति पर बल देते है।
यह सम्प्रदाय वन तथा वन्य जीवों की सुरक्षा में अग्रणी है।
प्रमुख स्थल
1.मुकाम – मुकाम- नौखा तहसील बीकानेर में है। यह स्थल जाम्भों जी का समाधि स्थल है।
2.लालासर – लालासर (बीकानेर) में जाम्भोजी को निर्वाण की प्राप्ति हुई।
3.रामडावास – रामडावास (जोधपुर) में जाम्भों जी ने अपने शिष्यों को उपदेश दिए।
4.जाम्भोलाव – जाम्भोलाव (जोधपुर), पुष्कर (अजमेर) के समान एक पवित्र तालाब है, जिसका निर्माण जैसलमेर के शासक जैत्रसिंह ने करवाया था।
5.जांगलू (बीकानेर), रोटू गांव (नागौर) विश्नोई सम्प्रदाय के प्रमुख गांव है।
6.समराथल – 1485 ई. में जाम्भो ने बीकानेर के समराथल धोरा (धोक धोरा) नामक स्थान पर विश्नोई सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया।
जाम्भों जी को पर्यावरण वैज्ञानिक /पर्यावरण संत भी कहते है।
जाम्भों जी ने जिन स्थानों पर उपदेश दिए वो स्थान सांथरी कहलाये।
- लाल दासी सम्प्रदाय
संस्थापक -लाल दास जी। समाधि -शेरपुरा (अलवर)
लालदास जी का जन्म धोली धूव गांव (अलवर में हुआ)
लाल दास जी को ज्ञान की प्राप्ति तिजारा (अलवर)
प्रधान पीठ – नगला जहाज (भरतपुर) में है।
मेवात क्षेत्र का लोकप्रिय सम्प्रदाय है। - चरणदासी सम्प्रदाय
संस्थापक -चारणदास जी
चरणदास जी का जन्म डेहरा गांव (अलवर) में हुआ।
वास्तविक नाम- रणजीत सिंह डाकू
राज्य में पीठ नहीं है।
प्रधान पीठ दिल्ली में है।
चरणदास जी ने भारत पर नादिर शाह के आक्रमण की भविष्यवाणी की थी।
मेवात क्षेत्र में लोकप्रिय सम्प्रदाय ळै।इनकी दो शिष्याऐं दयाबाई व सहजोबाई थी।
दया बाई की रचनाऐं – “विनय मलिका” व “दयाबोध”
सहजोबाई की रचना – “सहज प्रकाश” - प्राणनाथी सम्प्रदाय
संस्थापक – प्राणनाथ जी
प्राणनाथ जी का जन्म जामनगर (गुजरात) में हुआ।
राज्य में पीठ – जयपुर मे।
प्रधान पीठ पन्ना (मध्यप्रदेश) में है।
पवित्र ग्रन्थ – कुलजम संग्रह है, जो गुजराती भाषा में लिखा गया है। - वैष्णव धर्म सम्प्रदाय
इसकी चार शाखाऐं है। - वल्लभ सम्प्रदाय/पुष्ठी मार्ग सम्प्रदाय
- निम्बार्क सम्प्रदाय /हंस सम्प्रदाय
- रामानुज सम्प्रदाय/रामावत/रामानंदी सम्प्रदाय
- गौड़ सम्प्रदाय/ब्रहा्र सम्प्रदाय
- वल्लभ सम्प्रदाय /पुष्ठी मार्ग सम्प्रदाय
संस्थापक -आचार्य वल्लभ जी
अष्ट छाप मण्डली – यह मण्डली वल्लभ जी के पुत्र विठ्ठल नाथ जी ने स्थापित की थी, जो इस सम्प्रदाय के प्रचार-प्रसार का कार्य करती थी।
प्रधान पीठः- श्री नाथ मंदिर (नाथद्वारा-राजसमंद)
नाथद्वारा का प्राचीन नाम “सिहाड़” था।
1669 ई. में मुगल सम्राट औरंगजेब ने हिन्दू मंदिरों तथा मूर्तियों को तोडने का आदेश जारी किया । फलस्वरूप वृंदावन से श्री नाथ जी की मूर्ति को मेवाड़ लाया गया । यहां के शासक राजसिंह न 1672 ई. में नाथद्वारा में श्री नाथ जी की मूर्ति को स्थापित करवाया।
यह बनास नदी के किनारे स्थित है।वल्लभ सम्प्रदाय दिन में आठ बार कृष्ण जी की पूजा- अर्चना करता है।
वल्लभ सम्प्रदाय श्री कृष्ण के बालरूप की पूजा-अर्चना करता है।
किशनगढ़ के शासक सांवत सिंह राठौड इसी सम्प्रदाय से जुडे हुए थे।
इस सम्प्रदाय की 7 अतिरिक्त पीठें कार्यरत है।
बिठ्ठल नाथ जी -नाथद्वारा (राजसमंद)
द्वारिकाधीश जी – कांकरोली (राजसमंद)
गोकुल चन्द्र जी – कामा (भरतपुर)
मदन मोहन जी – मामा (भरतपुर)
मथुरेश जी – कोटा
बालकृष्ण जी – सूरत (गुजरात)
गोकुल नाथ जी – गोकुल (उत्तर -प्रदेश)
मूल मंत्र – श्री कृष्णम् शरणम् मम्।
दर्शन – शुद्धाद्वैत
पिछवाई कला का विकास वल्लभ सम्प्रदाय के द्वारा - निम्बार्क सम्प्रदाय/हंस सम्प्रदाय
संस्थापक – आचार्य निम्बार्क
राज्य में प्रमुख पीठ:- सलेमाबाद (अजमेर) है।
राज्य की इस पीठ की स्थापना 17 वीं शताब्दी में पुशराम देवता ने की थी, इसलिए इसको “परशुरामपुरी” भी कहा जाता है।
सलेमाबाद (अजमेर में) रूपनगढ़ नदी के किनारे स्थित है।
परशुराम जी का ग्रन्थ – परशुराम सागर ग्रन्थ।
निम्बार्क सम्प्रदाय कृष्ण-राधा के युगल रूप की पूजा-अर्चना करता है।
दर्शन – द्वैता द्वैत - रामानुज/रामावत/रामानंदी सम्प्रदाय
संस्थापक -आचार्य रामानुज
रामानुज सम्प्रदाय की शुरूआत दक्षिण भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत आचार्य रामानुज द्वारा की गई।
उत्तर भारत में इस सम्प्रदाय की शुरूआत रामानुज के परम शिष्य रामानंद जी द्वारा की गई और यह सम्प्रदाय, रामानंदी सम्प्रदाय कहलाया।
कबीर जी, रैदास जी, संत धन्ना, संत पीपा आदि रामानंद जी के शिष्य रहे है।
राज्य में रामानंदी सम्प्रदाय के संस्थापक कृष्णदास जी वयहारी को माना जाता है।
“कृष्णदास जी पयहारी” ने गलता (जयपुर) में रामानंदी सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ स्थापित की। “कृष्णदास जी पयहारी” के ही शिष्य “अग्रदास जी” ने रेवासा ग्राम (सीकार) में अलग पीठ स्थापित की तथा “रसिक” सम्प्रदाय के नाम से अलग और नए सम्प्रदाय की शुरूआत की।
राजानुज/रामावत/रामानदी सम्प्रदाय राम और सीता के युगल रूप की पूजा करता है।
दर्शन:- विशिष्टा द्वैत
सवाई जयसिंह के समय रामानुज सम्प्रदाय का जयपुर रियासत में सर्वाधिक विकास हुआ।
रामारासा नामक ग्रंथ भट्टकला निधि द्वारा रचित यह ग्रन्थ सवाई जयसिंह के काल में लिखा था। - गौड़ सम्प्रदाय/ब्रहा्र सम्प्रदाय
संस्थापक -माध्वाचार्य
भारत में इस सम्प्रदाय का प्रचार-प्रसार मुगल सम्राट अकबर के काल में हुआ।
राज्य में इस सम्प्रदाय का सर्वाधिक प्रचार जयपुर के शासक मानसिंह -प्रथम के काल में हुआ।
मानसिंह -प्रथम ने वृन्दावन में इस सम्प्रदाय का गोविन्द देव जी का मंदिर निर्मित करवाया
प्रधान पीठ:- गोविन्द देव जी मंदिर जयपुर में है।
इस मंदिर का निर्माण सवाई जयसिंह ने करवाया।
करौली का मदनमोहन जी का मंदिर भी इसी सम्प्रदाय का है।
दर्शन – द्वैतवाद - शैवमत सम्प्रदाय
इसकी चार श्शाखाऐं है। - कापालिक
- पाशुपत
- लिंगायत
- काश्मीरक
- कापालिक
कापालिक सम्प्रदाय भैख की पूजा भगवान शिव के अवतार के रूप में करता है।
इस सम्प्रदाय के साधु तानित्रक विद्या का प्रयोग करते है।
कापालिक साधु श्मसान भूमि में निवास करते हैं।
कापालिक साधुओं को अघोरी बाबा भी कहा जाता है। - पाशुपत
प्रवर्तक:- लकुलिश (मेवाड़ से जुडे हुए थे)
यह सम्प्रदाय दिन में अनेक बार भगवान शिव की पूजा -अर्जना करता है।
8.नाथ सम्प्रदाय
यह शैवमत की ही एक शाखा है जिसका संस्थापक – नाथ मुनी को माना जाता है।
प्रमुख साधु:- गोरख नाथ, गोपीचन्द्र, मत्स्येन्द्र नाथ, आयस देव नाथ, चिडिया नाथ, जालन्धर नाथ आदि।
जोधपुर के शासक मानसिंह नाथ सम्प्रदाय से प्रभावित थे।
मानसिंह ने नाथ सम्प्रदाय के राधु आयस देव नाथ को अपना गुरू माना और जोधपुर में इस सम्प्रदाय का मुख्य मंदिर महामंदिर स्थापित करवाया।
नाथ सम्प्रदाय की दो शाखाऐं थी। - राताडंूगा (पुष्कर) मे – वैराग पंथी
- महामंदिर (जोधपुर) में – मानपंथी
- रामस्नेही सम्प्रदाय
यह वैष्णव मत की निर्गणु भक्ति उपसक विचारधारा का मत रखने वाली शाखा है।
इस सम्प्रदाय की स्थापना रामानंद जी के ही शिष्यों ने राजस्थान में अलग-अलग क्षेत्रों में क्षेत्रिय शाखाओं द्वारा की।
इस सम्प्रदाय के साधु गुलाबी वस्त्र धारण करते है तथा दाडी-मूंछ नही रखते है।
प्रधान पीठ:-शाहपुरा (भीलवाडा) प्राचीन पीठ- बांसवाडा में थी।
इस सम्प्रदाय की चार शाखाऐं है।
1.शाहपुरा (भीलवाडा) -संस्थापक -रामचरणदास जी- काव्यसंग्रह- अनभैवाणी
2.रैण (नागौर) – दरियाव जी
3.सिंहथल (बीकानेर) हरिराम दास जी- रचना निसानी
4.खैडापा (जोधपुर)- रामदास जी
रामचरण दास जी का जन्म सोडाग्राम (टोंक) में हुआ।
- राजा राम सम्प्रदाय
संस्थापक – राजाराम जी
प्रधान पीठ – शिकारपुरा (जोधपुर)
यह सम्प्रदाय मारवाड़ क्षेत्र में लोकप्रिय है।
संत राजा राम जी पर्यावरण प्रेमी व्यक्ति थे।
इन्होंने वन तथा वन्य जीवों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। - नवल सम्प्रदाय
संस्थापक -नवल दास जी
प्रधान पीठ – जोधपुर
जोधपुर व नागौर क्षेत्र में लोकप्रिय है। - अलखिया सम्प्रदाय
संस्थापक -स्वामी लाल गिरी
प्रधान पीठ – बीकानेर
क्षेत्र -चुरू व बीकानेर
पवित्र ग्रन्थ:- अलख स्तुति प्रकाश - निरजंनी सम्प्रदाय
संस्थापक – संत हरिदास जी (डकैत)
जन्म – कापडौद (नागौर)
प्रधान पीठ – गाढा (नागौर)
दो शाखाऐं है – - निहंग
- घरबारी
- निष्कंलक सम्प्रदाय
संस्थापक – संत माव जी
जन्म – साबला ग्राम – आसपुर तहसील (डूंगरपुर)
माव जी को ज्ञान की प्राप्ति बेणेश्वर धाम (डूंगरपुर) में हुई
मावजी का ग्रन्थ/ उपदेश चैपडा कहलाता है। यह बागड़ी भाषा गया है।
माव जी बागड़ क्षेत्र में लोकप्रिय है। इन्होंने भीलों को आध्यात्मिक - मीरा दासी सम्प्रदाय
संस्थापक – मीरा बाई
मीरा बाई को राजस्थान की राधा कहते है।
जन्म कुडकी ग्राम (नागौर) में हुआ।
पिता- रत्न सिंह राठौड़
दादा -रावदूदा
परदादा -राव जोधा
राणा सांगा के बडे़ पुत्र भोजराज से मीरा बाई का विवाह हुआ और 7 वर्ष बाद उनके पति की मृत्यु हो गई।
पति की मृत्यु के पश्चात् मीराबाई ने श्री कृष्ण को अपना पति मानकर दासभाव से पूजा-अर्जना की।
मीरा बाई ने अपना अन्तिम समय गुजरात के राणछौड़ राय मंदिर में व्यतीत किया और यहीं श्री कृष्ण जी की मूर्ति में विलीन हो गई।
प्रधान पीठ- मेड़ता सिटी (नागौर)
मीरा बाई के दादा रावदूदा ने मीरा के लिए मेड़ता सिटी में चार भुजा नाथ मंदिर (मीरा बाई का मंदिर) का निर्माण किया।
मीरा बाई के मंदिर – मेडता सिटी, चित्तौड़ गढ़ दुर्ग में।
मीरा बाई की रचनाऐं - मीरा पदावलिया (मीरा बाई द्वारा रचित)
- नरसी जी रो मायरो (मीरा बाई के निर्देशन में रतना खाती द्वारा रचित)
डाॅ गोपीनाथ शर्मा के अनुसार मीरा बाई का जन्म कुडकी ग्राम में हुआ जो वर्तमान में जैतरण तहसील (पाली) में स्थित है।
कुछ इतिहासकार मीरा बाई का जन्म बिजौली ग्राम (नागौर) में मानते है। उनके अुनसार मीर बाई का बचपन कुडकी ग्राम में बीता।
- संत धन्ना
जन्म – धुंवल गांव (टोंक) में जाट परिवार में हुआ।
संत धन्ना रामानंद जी के शिष्य थे। - संत पीपा
जन्म – गागरोनगढ़ (झालावाड़) में हुआ।
पिता का नाम – कडावाराव खिंची।
बचपन का नाम – प्रताप था।
पीपा क्षत्रिय दरजी सम्प्रदाय के लोकप्रिय संत थे।
मंदिर -समदडी (बाडमेर)
गुफा – टोडाराय (टोंक)
समाधि – गागरोनगढ़ (झालावाड़)
राजस्थान में भक्ति आन्दोलन का प्रारम्भ कत्र्ता संत पीपा को माना जाता है। - संत रैदास
मीरा बाई के गुरू थे।
रामानंद जी के शिष्य थे।
मेघवाल जाति के थे।
इनकी छत्तरी चित्तौड़गढ दुर्ग में स्थित है। - गवरी बाई
गवरी बाई को बागड़ की मीरा कहते है।
डूंगरपुर के महारावल शिवसिंह ने डूंगरपुर में गवरी बाई का मंदिर बनवायया जिसका नाम बाल मुकुन्द मंदिर रखा।
गवरी बाई बागड़ क्षेत्र में श्री कृष्ण की अनन्य भक्तिनी थी। - भक्त कवि दुर्लभ
ये कृष्ण भक्त थे।
इन्हे राजस्थान का नृसिंह कहते है।
ये बागड़ क्षेत्र के प्रमुख संत है। यह इनका कार्य क्षेत्र रहा है। - संत खेता राज जी
संत खेता राम जी ने बाड़मेंर में आसोतरा नामक स्थान पर ब्रहा्रा जी का मंदिर निर्मित करवाया
राजस्थान के प्रमुख संत एवं संप्रदाय PDF
राजस्थान के लोक संत एवं संप्रदाय (PDF) : राजस्थान के लोक संत एवं संप्रदाय से जुड़े प्रश्न अक्सर परीक्षाओं में पूछे जाते हैं इन्हीं राजस्थान के प्रमुख लोक संत ( rajasthan ke lok sant pdf ) से जुड़े प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए राजस्थान के प्रमुख लोक संतों से जुड़ी जानकारी यहाँ दी गयी है।
राजस्थान में धर्म एवं संत संप्रदाय से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी
- राजस्थान में प्राचीन काल में कौन से धर्म का प्रचार प्रसार हुआ- वैदिक धर्म का
- राजस्थान में सर्वाधिक किस धर्म के लोग रहते है- हिंदू धर्म
- सनातन धर्म किस धर्म को कहते हैं- हिन्दु धर्म को
- पुराणों की संख्या है- 18
- वाराणसी के बाद राजस्थान का दक्षिणांचल बांगड प्रदेश अथवा वाग्गर प्रदेश को शिव पूजा की व्यापकता और शिवालयों के बाहुल्य के कारण ही संसार में किस रूप में मान्यता मिली है- लोढी काशी
- राजस्थान के मोलेला ग्राम को संसार भर में चर्चित करने का श्रेय किस लेखक को है जिसने अपनी पुस्तक ‘टेराकोटा ऑफ राजस्थान‘ में वहां के परंपरागत कुम्हारो व उनके द्वारा निर्मित देवी देवताओं की मूर्तियों को समाज शास्त्रीय विधी से विस्तारपूर्वक वर्णन किया – डॉ. प्रमोद कुमार
- राजस्थान में वैष्णव धर्म का सबसे पहला उल्लेख किस अभीलेख में मिलता है- घोसुन्डी अभिलेख
- जैन धर्म में सफेद वस्त्र धारण करने वाले साधु किस पंथ के हैं- तेरापंथी
- राजस्थान में एक सम्प्रदाय तेरह पंथी है इसके संस्थापक है- भीकम जी ओसवाल
- किस मत में मूकता पूजा के साथ साथ साधुओं का नग्न रहना आवश्यक है- दिगम्बर
- पाली जिले का बाली-रानी-देसूरी क्षेत्र गोडवाडा क्षेत्र जैन मंदिरों से भरा पडा है लेकिन यहां के पंच तीथों का जैन तीथों में विशेष महत्व है इनमें विश्व विख्यात जैन मंदिर रणकपुर, श्री मुछाला, महावीर, धाणेराव, नाडौल, पाश्र्वनाथ जैन मंदिर, नरकाणा तथा नरलाई प्रमुख है। ऐसा कौन सा गांव है जिसे तेरह जैन मंदिरों का, जैन धर्म के महान कवि ऋषभर्दास तथा आचार्य श्री विजय सेन सूरीर्श्र का जन्म स्थान होने का गौरव प्राप्त है- नारलाई
- मेवाड राजकु के अराध्य देव है- एकलिंगेश्वर
- जयपुर राजवंश (कच्छवाहा वंश) की कुलदेवी है- शीलादेवी
- राज्य में बौद्ध चैव्यालयों के मग्नावेश कमले हैं- बैराठ (जयपुर)
- किस सम्प्रदाय को भागवत मत तथा पांचरात्र मत भी कहते हैं- वैष्णव मत
- वैष्णव सम्प्रदाय की दो मुख्य गाद्दीयों राजस्थान में है- नाथद्वारा, कोटा
- जसनाथी सम्प्रदाय की स्थापना किस ने की थी- संत जसनाथ जी
- संत जसनाथ जी कहां के रहने वाले थे- करतियासर (बीकानेर)
- जसनाथी सम्प्रदाय की मुख्य गद्दी किस स्थान पर है- बीकानेर
- जसनाथी सम्प्रदाय के अनुयायी कितने नियमों का पालन करते है- 36
- अग्निनृत्य किस सम्प्रदाय से है- जसनाथी सम्प्रदाय
- ‘सिमूधडा’ व ‘कोडा’ ग्रंथ किस से सम्बंधित है- जसनाथ जी
- विश्नोई सम्प्रदाय के संस्थापक थे- जाम्भोजी
- जम्भोजी धारा 29 नियमों का पालन करने वाले कहलाते है – विश्नोई
- विश्नोई पंथ सम्प्रदाय के प्रवर्तक जम्भोजी को किसका अवतार माना जाता है- विष्णु का
- ‘कवश्नोई पन्थ’ का धार्मिक ग्रन्थ कौनसा है- जम्ब सागर
- संत जम्भोजी का जन्म 1415 में नागौर जिले के किस गांव में हुआ था- पीपासर
- जाम्भोजी किस के शिष्य थे- गोरखनाथ जी के
- खेजडी अर्थात शमी वृक्ष की पूजा किस पर्व पर की जाती है- दशहरा
- मुर्दों को गाढना, चोटी न रखना, वस्त्रवाह फेरे न होना आदि किस सम्प्रदाय से सम्बंधित है- विश्नोई
- ‘दादू पंथी’ सम्प्रदाय के प्रवताक थे- दादू दयाल
- दादू जी का स्मारक कहां है – नरैना (जयपुर)
- दादू पंथ की मुख्य गद्दी किस स्थान पर है- नरैना (जयपुर)
- दादू मोक्ष प्राप्ति हेतु आवश्यक समझते थे- गुरू द्वारा मार्गदर्शन
- किस सम्प्रदाय की ‘नागा और विहंग’ नामक दो शाखायें राजस्थान में मिलती है- दादू पंथी
- संत सुन्दर दास किस के शिष्य थे- दादू दयाल
- दादू पंथ के प्रवर्तक संत दादू दयाल कहां के रहने वाले थे- अहमदाबाद
- दादू दयाल के 52 शिष्य में से कौन से दो शिष्य ने विशेष प्रसिद्ध हासील की- सुन्दरजी, रज्जथजी
- प्रवर्तक दादू-दयाल के उपवेश 5000 छंदों में संग्रहीत है- दादू वाणी
- किस सम्प्रदाय में दाह संस्कार का अनोखा तरीका है अर्थात मृतक को जंगल में छोड दिया जाता है जहां हिंसक पशु, पक्षी उसका भक्षण करते हैं- गौडीय सम्प्रदाय
- रामस्नेही सम्प्रदाय, 1650 के संस्थापक थे- रामचरणजी
- रामस्नेही का शाब्दिक अर्थ रामोपासक होता है पर वह दशरथी राम न होकर किस का वाचक है- निर्गुण निराकार ब्रह्म
- रामस्नेही सम्प्रदाय के प्राथाना स्थल कहलाते है जहां गुरू का चित्र रखा जाता है- रामद्वारा
- रामस्नेही सम्प्रदाय की प्रमुख गद्दी है- बांसवाडा
- शाहपुरा, रैण, सिंहथल-खेडापा किस सम्प्रदाय की शाखा है- रामस्नेही सम्प्रदाय
- नाथ सम्प्रदाय की गद्दी किस जिले में है- जोधपुर
- राजस्थान में गोरखनाथ की एक शाखा ‘बैराग पंथ’ का पुष्कर के पास राताडुंगा है तो दूसरी शाखा माननाथी पंथ का केन्द्र है- जोधपुर का महामंदिर
- नाथपंथ किस देवता में विसवास करता है- शिव
- ‘कनफडी-नाथों’ का तीथास्थल है- भर्तहरी
- ‘गौडीय-सम्प्रदाय’ के संस्थापक थे- गौरांग महाप्रभु चैतन्य
- गौडीय सम्प्रदाय के अनुयायी राजस्थान में कहां पाये जाते हैं- जयपुर, सवाई माधोपुर
- किस सम्प्रदाय के संपर्क में आकर जयपुर के मानसिंह ने वृंदावन में 1593 में ‘गोविन्द मंदिर’ बनवाया- गौडीय सम्प्रदाय
- चैतन्य महाप्रभु के शिष्य रूपी गोस्वामी के नेतृत्व में गोविन्द देव जी को किस सन् में जयपुर लाया गया- 1770 में
- निम्बार्क सम्प्रदाय के संस्थापक थे- निम्बकाचार्य
- निम्बार्क सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ है- सलेमाबाद (किशनगढ)
- जयपुर नरेश जगत सिंह को पुत्र जय सिंह की प्राप्ति किस सम्प्रदाय के आशीर्वाद के फलस्वरूप हुई थी- निम्बार्क सम्प्रदाय
- रामानुज सम्प्रदाय के संस्थापक थे- रामानुजाचार्य
- रामनुजम सम्प्रदाय को जयपुर के किस शासक ने आश्रय प्रदान किया – सवाई जयसिंह
- राजस्थान के धार्मिक जीवन को नई दिशा देने में सर्व प्रथम योगदान करने वाले संत धन्नोजी किस के शिष्य थे- रामानंद
- संत पीपाजी के अनुसार मोक्ष का प्रमुख साधन था- धुवन गांव, टोंक
- राजस्थान में वल्लभ सम्प्रदाय का प्रमुख तीर्थ स्थल है- नाथद्वारा
- वल्लभ सम्प्रदाय के संस्थापक थे- वल्रभाचार्य
- वल्लभ सम्प्रदाय के प्रमुख पीठ व स्थान है- कोटा
- प्रथम पीठ मथुरेश जी- कोटा
- द्वतीय पीठ विठ्ठलदास- नाथद्वारा, राजसमन्द
- तृतीय पीठ द्वाररकाधीश जी- काकरोली, उदयपुर
- चतुथा पीठगोकुल जी- गोकुल, मथुरा
- वल्लभ का मार्ग भक्ति मार्ग है तथा वल्लभ अपने दार्शनिक सम्प्रदायों को कहते हैं- शुद्धाद्वैत
- किशनगढ राजवंश का राजा सावंतसिंह वल्लभ संप्रदाय का अनुयायी हो गया और संत रणछोड दास जी से दीक्षा ग्रहण करने के बाद जाना जाने लगे- नागरीदास
- किस सम्प्रदाय के मंदिरों में आठ बार पूजा होती है और मंत्र है ‘श्री कृ श्ण शरणं ममः’- वल्लभ संप्रदाय
- निरंजनी सम्प्रदाय के संस्थापक थे- हरिदास जी
- निहंग और धरवारी किस सम्प्रदाय के अनुयाययों की शाखाओं है- निरंजनी
- शैवमत के संस्थापक थे- लकु लीश
- शमशान में रहने वाले अधौरी जो आज भी राज्य में मिलते हैं, कहलाते हैं- कपालिक
- कौनसा राजघराना स्वयं को लकु लीश कशव का अनुयायी मानता है- उदयपुर घराना
- शैव सम्प्रदाय के वे दो मत किनके प्रमाण राज्य में मिलते हैं- कपालिक, पाशुपत
- कबीर किस के कशष्य थे- रामानंद
- कबीर पंथी सम्प्रदाय के संस्थापक थे- कबीर जी
- राजस्थान में शक्ति की पूजा करने वाला सम्प्रदाय कहलाता है- शक्ति संप्रदाय
- शिलादेवी- मानसिंह कद्वतीय, जयपुर
- करणीमाता- बीकानेर राजवंश (राठौड)
- दाऊदी बोहरा मुप्तिमों का प्रमुख धाकमाक स्थान पीर फखरूिद्दीन की दरगाह है- गलियाकोट
- दासी सम्प्रदाय के संस्थापक थे- मीराबाई
- लालदासी सम्प्रदाय के प्रवताक सत लाल दासी जी (मेव) का जन्म हुआ- धौली धूप (अलवर)
- राजस्थान के ककन कजलों में लादासी सम्प्रदाय की मान्यता अधिक है- अलवर, भरतपुर
- संत लालदासजी का देहवसान किस स्थान पर हुआ- नगला (भरतपुर)
- लालदासी सम्प्रदाय के उपदेश किस गंरथ में संग्रकहत है- बानी
- प्राणनाथ (परनामी) सम्प्रदाय के उपदेश किस ग्रंथ में संकलीत है- कुलजम स्वरूप
- परनामी सम्प्रदाय के प्रवताक हैं– महापति प्राणनाथ
- राजस्थान में परनामी सम्प्रदाय के लोगों की एक अलग बस्ती (कॉलोनी) है वही एक बडा मंदिर भी स्थित है- आदर्नश नगर, जयपुर
- राजस्थान में रामदेवरा तीर्थ स्थान किस धर्म गुरू की आस्था से जुडा है- बाबा रामदेव
- भीकम जी ओसवाल ने जैनधर्म में सन् 1760 ई. में नई शाखा को जन्म कदया, वह है- तेरापंथी
- राजस्थान में ‘दररयापंथ’ का धार्मिक स्थल कहां है- रैढ (टोंक)
राजस्थान के महान संत कवि कौन थे?
राजस्थान के महान कवि सूर्यमल्ल मिश्रण (या मीसण) का जन्म चारण जाति में बूंदी जिले के हरणा गांव में कार्तिक कृष्णा प्रथम वि. सं. 1872 को हुआ था।
राजस्थान में रामस्नेही संप्रदाय के 4 केंद्र कौन कौन से हैं?
राजस्थान में रामस्नेही संप्रदाय के 4 केंद्र हैं –
1. शाहपुरा
2. रैण
3. सिंहथल
4. खेड़ापा
संतो के कितने पंथ होते हैं?
स्वतंत्र सत्ता स्थापित करने वाले संतों में ब्रह्माकुमारी के दादा लेखराज, सत्यसांई बाबा, महर्षि महेष योगी, श्रीश्री रविशंकर, ओशो रजनीश, आनंदमार्ग के आनंदमूर्ति, राधा स्वामी सत्संग के श्रीशिव दयालसिंह, जय गुरूदेव बाबा ऊर्फ स्वामी तुलसीदास, जे. कृष्णमूर्ति, चंद्रास्वामी, आचार्य प्रमोद कृष्णम, स्वामी अग्निवेश, धीरेंद्र ब्रह्मचारी…आसाराम बापू उर्फ आशुमल शिरमलानी, सुखविंदर कौर उर्फ राधे मां,, सच्चिदानंद गिरि उर्फ सचिन दत्ता, गुरमीत सिंह डेरा सच्चा सौदा, सिरसा, ओम बाबा उर्फ विवेकानंद झा, निर्मल बाबा उर्फ निर्मल जीत सिंह, इच्छाधारी भीमानंदन उर्फ शिवमूर्ति द्विवेदी, स्वामी असीमानंद, ॐ नम: शिवाय बाबा, नारायण साई, रामपाल, आचार्य कुशमुनि, मलखान गिरि, बृहस्पति गिरि आदि असंख्य लोग हैं। इनमें कौन सही और कौन गलत है यह तो जनता ही तय करती है। लेकिन ये सभी हिन्दू संत धारा के संत नहीं स्वयंभू संत हैं।
राजस्थान में कुंड संप्रदाय के संस्थापक कौन थे?
गुरु गोरखनाथ ने इस सम्प्रदाय के बिखराव और इस सम्प्रदाय की योग विद्याओं का एकत्रीकरण किया, अतः इसके संस्थापक गोरखनाथ माने जाते हैं।
राजस्थान में सबसे बड़ा संत कौन है?
खेतेश्वर महाराज (22 अप्रैल 1912 — 7 मई, 1984) राजपुरोहित समाज के सन्त तथा आराध्य महात्मा थे।
पंथ कितने होते हैं?
अब जानिए हिन्दू धर्म में समाहित पंथ : मूलत: हिन्दुओं के छह पंथ माने जा सकते हैं- वैष्णव, शैव, शाक्त, वैदिक, स्मार्त और संत।
राजस्थान में दादू पंथ का मुख्य केन्द्र कहाँ है?
दादू पंथियों का सत्संग स्थल ‘ अलख दरीबा ‘ के नाम से जाना जाता है।
वर्तमान समय में पूर्ण संत कौन है?
संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं।
राजस्थान का कबीर किस लोक संत को कहा जाता है?
संत दादू दयाल जी को ‘राजस्थान का कबीर‘ कहा जाता है| दादूदयाल हिन्दी के भक्तिकाल में ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रमुख सन्त कवि थे।
आज अपने क्या सीखा ?
मैं आपसे उम्मीद करती हूँ की आपने राजस्थान के प्रमुख संत एवं समुदाय की इस पोस्ट को अच्छे से पढ़ लिया होगा. आपके राजस्थान के प्रमुख संत एवं समुदाय से सम्बन्धित सारे डाउट भी क्लियर हो गए होंगे.
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