
इस पोस्ट में आप माघ मास के मेले और त्यौहार को विस्तार से पढेंगे |
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार माघ वर्ष का ग्यारहवा महीना होता है।अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह जनवरी-फ़रवरी महीने में आता है।14 फ़रवरी को आने वाला मकर संक्रांति का पर्व पौष या माघ माह में आता है। माघ के मास में जब सूर्य मकर राशि में अपना प्रवेश करता है तो श्रद्धालु तीर्थों के राजा प्रयाग के पावन संगम तट पर आकर त्रिवेणी में स्नान करते हैं। ऐसे में इस माह में स्नान का अति महत्व होता है।
माघ मास के मेले और त्यौहार की सूचि
माघ माह में आने वाले त्यौहार :-
कृष्ण पक्ष | शुक्ल पक्ष |
चतुर्थी – तिल चौथ संकट हरण चतुर्थी माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सकट चौथ, तिलकुटा चौथ, संकटा चौथ, माघी चतुर्थी आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन स्त्रियां अपनी संतान की लंबी उम्र और सुखी जीवन के लिए व्रत रखती हैं तथा भगवान गणेश की विशेष पूजा अर्चना करती है।सवाई माधोपुर के चौथ का बरवाड़ा में इस दिन मेला लगता है। | प्रतिपदा – गुप्त नवरात्र प्रारम्भ |
एकादशी – षटतिला एकादशी | पंचमी – बसंत पंचमी/ सरस्वती जयंती प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कला से जुड़े लोग चाहे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं। राजस्थान सरकार द्वारा बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करने हेतु इस दिन गार्गी पुरस्कार वितरण किया जाता है। |
अमावस्या – मौनी अमावस्या माघ मास की अमावस्या जिसे मौनी अमावस्या कहते हैं। योग पर आधारित महाव्रत है। इस दिन तिल दान उत्तम माना जाता है। इस व्रत में व्रत करने वाले को पूरे दिन मौन व्रत का पालन करना होता इसलिए यह योग पर आधारित व्रत कहलाता है।यह तिथि अगर सोमवार के दिन पड़ती है तब इसका महत्व कई गुणा बढ़ जाता है। अगर सोमवार हो और साथ ही महाकुम्भ लगा हो तब इसका महत्व अनन्त गुणा हो जाता है।कुम्भ का शाही स्नान इसी तिथि को किया जाता है। | अष्टमी – भीष्म अष्टमी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इच्छामृत्यु वरदान प्राप्त भीष्म पितामह ने इसी दिन सूर्य के उत्तरायण होने पर प्राण त्यागे थे। |
माघ मास में आने वाले मेले :-
बेणेश्वर मेला, डूंगरपुर
- बेणेश्वर का मेला माघ शुक्ल एकादशी से माघ पूर्णिमा तक डूंगरपुर जिले की आसपुर तहसील के नवातपुरा नामक स्थान पर आयोजित होता है।
- नवातपुरा के साबला गाँव में सोम माहि जाखम नदियों के पवित्र संगम पर यह बेणेश्वर धाम स्थित है।
- राजस्थान में निष्कलंकी सम्प्रदाय के प्रवर्तक संत मावजी ने इस बेणेश्वर धाम की स्थापना की थी।
- इसका केन्द्र वहां स्थित शिव मंदिर है इस मंदिर में दिन में दो बार जयघोष के साथ पूजा होती है। बेणेश्वर नाम वहां स्थित भगवान शिव के लिंग पर आधारित है। इसे स्वयम्भू लिंग भी कहा जाता है। यह लिंग पांच स्थानों से खण्डित है।
- यह राजस्थान के आदिवासी समाज का सबसे बड़ा मेला है।इसे आदिवासियों का कुम्भ भी कहा जाता है।
- इस मेले में आदिवासी संस्कृति की अनोखी झलक देखने को मिलती है।
- पूर्णिमा की रात्रि को यह मेला अपने चरमोत्कर्ष पर होता है।
- मेले के मुख्य आकर्षण आदिवासी महिलाओं द्वारा किये जाने वाले घूमर व गैर नृत्य होते है।
- इस मेले में आदिवासी युवक युवतियां अपना जीवनसाथी भी चुनते है।
रानी सती का मेला, झुंझुनू
- झुंझुनू में वर्ष में दो बार माघ कृष्ण नवमी व भाद्रपद कृष्ण नवमी को रानी सती का मेला लगता है।
- पहली बार यह मेला 1912 में आयोजित किया गया था।
- अपने पति के साथ सती होने वाली नारायणी देवी की स्मृति में यह मेला आयोजित होता है।
- मार्च 1988 में भारत सरकार द्वारा सती (निवारण) अधिनियम पारित करने के पश्चात् इस मेले पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
मरू मेला, जैसलमेर
- राजस्थान पर्यटन विभाग तथा जैसलमेर जिला प्रशासन की ओर से प्रतिवर्ष फ़रवरी में माघ माह में यह चार दिवसीय परंपरागत मरू महोत्सव आयोजित किया जाता है।
- देशी तथा विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने हेतु इस मेले में विभिन्न प्रतिस्पर्द्धाओं जैसे साफा बाँध, रस्सी खींच, मूंछ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है।
- ऊँट का पोलो खेल इस मेले का मुख्य आकर्षण है।
- साथ ही विभिन्न लोक कलाओं का प्रदर्शन किया जाता है।
- गैर व अग्नि नृत्य का प्रदर्शन भी इस मेले में किया जाता है।

नागौर मेला
- राजस्थान पर्यटन विकास निगम द्वारा प्रतिवर्ष माघ माह में नागौर में पशु मेले का आयोजन किया जाता है इसे नागौर मवेशी मेला के रूप में भी जाना जाता है|
- हर साल यहाँ बड़ी संख्या में ऊंट, बैल और घोड़ों का व्यापार होता है।
