मेवाड़ का इतिहास

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मेवाड़ का इतिहास :- मेवाड़ राजस्थान के दक्षिण-मध्य में स्थित एक रियासत थी। इसे ‘उदयपुर राज्य’ ( ‘चित्तौडगढ राज्य’ ) के नाम से भी जाना जाता है। इसमें आधुनिक भारत के उदयपुर, भीलवाड़ा, राजसमन्द, तथा चित्तौडगढ़, प्रतापगढ़ जिले थे। मेवाड़ के राजचिह्न में राजपूत और भील योद्धा अंकित है । सैकड़ों वर्षों तक यहाँ शासन रहा और इस पर गहलोत तथा सिसोदिया राजाओं ने 1200 वर्ष तक राज किया ।

  • १५५० के आसपास मेवाड़ की राजधानी थी (आहड़)[चित्तौड़गढ़|चित्तौड़]]। महाराणा प्रताप यहीं के राजा थे। अकबर की भारत विजय में केवल मेवाड़ के राणा प्रताप बाधक बना रहे। अकबर ने सन् 1576 से 1586 तक पूरी शक्ति के साथ मेवाड़ पर कई आक्रमण किए, पर उसका राणा प्रताप को अधीन करने का मनोरथ सिद्ध नहीं हुआ स्वयं अकबर, प्रताप की देश-भक्ति और दिलेरी से इतना प्रभावित हुआ कि प्रताप के मरने पर उसकी आँखों में आंसू भर आये। उसने स्वीकार किया कि विजय निश्चय ही राणा की हुई। यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में प्रताप जैसे महान देशप्रेमियों के जीवन से ही प्रेरणा प्राप्त कर अनेक देशभक्त हँसते-हँसते बलिवेदी पर चढ़ गए। महाराणा प्रताप की मृत्यु पर उसके उत्तराधिकारी अमर सिंह ने मुगल सम्राट जहांगीर से सन् 1615 में संधि कर ली। 
  • मेवाड़ का इतिहास बेहद ही गौरवशाली रहा है , मेवाड़ का प्राचीन नाम शिवी जनपद था । चित्तौड़ उस समय मेवाड़ का प्रमुख नगर था । प्राचीन समय में सिकंदर के आक्रमण भारत की तरफ बड़ रहे थे , उसने ग्रीक के मिन्नांडर को भारत पर आक्रमण करने के लिए भेजा , उस दौरान शिवी जनपद का शासन भील राजाओं के पास था । सिकंदर भारत को नहीं जीत पाया , उसके आक्रमण को शिवी जनपद के शासकों ने रोक दिया और सिकंदर की सेना को वापस जाना पड़ा ।
  • दरसअल मेवाड़ , भील राजाओं के शासन का क्षेत्र रहा , भीलों ने शासन करने के साथ साथ मेवाड़ धारा का विकास किया।
  • मेवाड़ पर राजा खेरवो भील का शासन स्थापित था , उसी दौरान गुहिलोतो ने मेवाड़ अपने कब्जे में कर लिया |
  • मेवाड़ राज्य की स्थापना लगभग 530 ई। में हुई थी; बाद में यह भी होगा, और अंततः मुख्य रूप से, राजधानी के नाम पर उदयपुर कहलाएगा। 1568 में, अकबर ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़गढ़ पर विजय प्राप्त की। 1576 में, मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप ने अकबर को हराया और हल्दीघाटी के युद्ध के बाद मुगलों से मेवाड़ की खोई हुई सभी भूमि को ले लिया। हालांकि, गुरिल्ला युद्ध के माध्यम से, महाराणा प्रताप ने पश्चिमी मेवाड़ पर कब्जा कर लिया। 1606 में, अमर सिंह ने देवरे की लड़ाई में मुगलों को हराया। 1615 में, चार दशक तक झड़प के बाद, Mewar और मुगलों ने एक संधि में प्रवेश किया, जिसके तहत मुगलों के कब्जे के लिए मेवाड़ के कब्जे के लिए मेवाड़ क्षेत्र को वापस कर दिया गया था और मुगल दरबार में भाग लेलेया जब 1949 में उदयपुर राज्य भारतीय संघ में शामिल हो गया, तो उस पर 1,400 वर्षों से मोरी, गुहिलोट और सिसोदिया राजवंशों का शासन था। चित्तौड़गढ़ सिसोदिया वंशावली ओ की राजधानी थी
  • मेवाड़ का उत्तरी भाग समतल है। बनास व उसकी सहायक नदियों की समतल भूमि है। चम्बल भी मेवाड़ से होकर गुज़रती है। मेवाड़ के दक्षिणी भाग में अरावली पर्वतमाला है,जो की बनास व उसकी सहायक नदियों को साबरमती व माही से अलग करती है,जो कि गुजरात सीमा में है। अरावली उत्तरपश्चिम क्षेत्र में है। इस कारण यहाँ उच्च गुणवत्ता पत्थर के भण्डार है। जिसका प्रयोग लोग गढ़ निर्माण में करना पसंद करते है। मेवाड़ क्षेत्र उष्णकटिबंधीय शुष्क क्षेत्र में आता है। वर्षा का स्तर 660 मिमी/वर्ष, उत्तर पूर्व में अधिकतया। ९०% वर्षा जून से सितम्बर के बीच पड़ती है। दक्षिण पश्चिम मानसून के कारण।

मेवाड के प्राचीन नाम

  • महाभारत काल में मेवाड़ शिवी जनपद के अन्तर्गत आता था। शिवी की राजधानी मध्यमिका (वर्तमान चित्तौड़गढ़) थी।
  • मेदपाट – मेव जाति की अधिकता के कारण मेवाड़ को मेदपाट कहा जाता था ।
  • उदसर – भीलों का मुख्य क्षेत्र होने के कारण मेवाड़ को उदसर भी कहा जाता था।         
  • प्रागवाट – शक्तिशाली, सम्पन्न राजाओ का क्षेत्र क्षेत्र
  • मेरुनाल – पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण मेवाड़ को प्राचीन काल में मेरुनाल भी कहा गया।
  • मेवाड़ का राज्य आदर्श वाक्य– “जो दृढ़ राखै धर्म तिही राखे करतार”         

मेवाड़ का राष्ट्र  ध्वज 

  • मेवाड़ के ध्वज में सबसे ऊपर उगते हुए सू्र्य की आकृति अंकित है।
  • एक तरफ व्यक्ति के हाथ में भाला ( भील व्यक्ति ) है तथा दूसरी तरफ व्यक्ति ( सिसोदिया व्यक्ति ) के हाथ में तलवार है।
  • ध्वज के नीचे मेवाड़ का आदर्श वाक्य अंकित है – “जो दृढ़ राखै धर्म तिही राखे करतार”
  • भाला लिए व्यक्ति भील जाति का है। इतिहासकारों के अनुसार व्यक्ति पूँजा भील है। मेवाड़ का वर्तमान राजकीय ध्वज महाराणा प्रताप के काल में निर्मित है।
  • मेवाड़ राजाओं के प्रमुख शस्त्र – तलवार व भाला थे ।
  • मेवाड़ के महाराणाओं को हिंदुआ सूरज कहा जाता हैं 
  • मेवाड़ के महाराणा कोई  भी शुभ कार्य करने या युद्ध में जाने से पहले एकलिंग जी से आज्ञा लेते जिसे आसका मांगना कहते थे
  • गुहिल वंश के कुलदेवता- एकलिंग नाथ जी हैं, एकलिंग नाथ जी का मंदिर कैलाशपुरी ( उदयपुर ) में स्थित है।
  • जिसका निर्माण बप्पा रावल द्वारा कराया गया।
  • एकलिंगनाथ जी  मंदिर को पाशुपात सम्प्रदाय की पीठ भी माना जाता है।
  • गुहिल वंश के आराध्य देव – गढ़बौर देव हैं, गढ़बौर देव का मन्दिर राजसमंद में स्थित है।
  • गढ़बौर देव का अन्य नाम – गढ़बौर चारभुजा नाथ।
  • सिसोदिया वंश की कुलदेवी- बाणमाता।
  • गुहिलों की आराध्य देवी- गढ़बौर माता हैं, गढ़बौर माता का मन्दिर राजसमंद में स्थित है।
  •  गुहिल वंश की स्थापना-566 ई. में गुहादित्य द्वारा।
  • मुहणोत नैणसी तथा कर्नल जेम्स टॉड ने  गुहिल वंश की कुल 24 शाखाएँ बतायी।

मेवाड़ का इतिहास:- गुहिलों की उत्पत्ति के सिद्धान्त व विभिन्न इतिहासकारो के मत 

  • अबुल फजल के अनुसार गुहिल ईरानी बादशाह नौशेखाँ आदिल के वंशज है।
  • आहड़ शिलालेख के अनुसार डॉ डी आर भंडारकर ने इन्हे ब्राह्मणो की संतान बताया हैं 
  • गोपीनाथ शर्मा के अनुसार गुहिल  मुख्यत: आनंदपुर ( वडनगर गुजरात) के ब्राह्मण थे।
  • कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार गुहिल वल्लभीनगर शासक शिलादित्य व पुष्पावती के वंशज है।
  • डॉ गौरीशंकर ओझा और मुहणौत नैणसी के अनुसार गुहिल सूर्यवंशी थे 
  • नयनचन्द्र सुरी भी इस मत के समर्थक थे की गुहिल रघुवंशी व सूर्यवंशी थे।
  • कान्हा व्यास ने एकलिंग महात्म्य में गुहिलों की विप्र ( ब्राह्मण ) कहा हैं

गुहिलादित्य या गुहादित्य

  • जैन ग्रंथो के अनुसार –
    • पिता- शिलादित्य वल्लभीनगर के शासक।
    • माता- पुष्पावती
    • पुष्पावती द्वारा गुफा में जन्म देने के कारण नाम गुहादित्य रखा गया ।
    • लालन-पालन वीरनगर की ब्राह्मणी कमलावती ने किया ।
  • गुहादित्य भील जाति के सहयोग से शासक बना।
  • मण्डेला भील ने अपना अंगूठा काटकर गुहादित्य का राज्याभिषेक किया।
  • गुहिलादित्य ने 566 ई. में भीलों के सहयोग से गुहिल वंश की स्थापना की । इसी कारण गुहिलादित्य को  वंश का संस्थापक, आदिपुरुष, मूलपुरुष कहा जाता हैं 
  • गुहादित्य का आठवाँ वंशज बप्पा रावल था।

बप्पा रावल (734-753 ई.)- 

  •   जन्म – 713 ई. ईडर (गुजरात)
  •   पिता – महेन्द्र द्वितीय
  • गुहिल वंश का वास्तविक संथापक बप्पा रावल को माना जाता हैं 
  • बप्पा रावल ने हारित ऋषि के आशीर्वाद से 734 ई. में मान मौर्य को पराजित कर चित्तौड़गढ़ पर अधिकार किया।
  • 734 ई. में मेवाड़ के शासक बनकर अपनी राजधानी नागदा को बनाया।
  • नैणसी, श्यामलदास एवं कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार बप्पा रावल का वास्तविक नाम कालभोज था 
  • रणकपुर प्रशस्ति में बप्पा रावल व कालभोज दोनों को अलग अलग बताया गया हैं 
  • कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में बप्पा रावल को विप्रवंशीय बताया गया है।
  • आहाड़ शिलालेख में कालभोज को मुकुटमणि कहा गया हैं 
  • सिंध शासक दाहरसेन को भी बप्पा रावल ने पराजित किया।
  • 735 ई. में बप्पा ने ईराक के शासक हज्जात को पराजित किया।
  • 738 ई. में बप्पा ने अरबी आक्रांता जुनैद को पराजित किया।
  • पाकिस्तान के रावलपिंड़ी शहर बप्पा रावल के नाम पर हैं जंहा  बप्पा रावल ने सैनिक चौकी स्थापित की थी।
  • बप्पा रावल ने गजनी (अफगानिस्तान) के शासक सलीम को भी पराजित किया।
  • बप्पा रावल के समकालीन चालुक्य (सोलंकी) शासक विजयदित्य द्वितीय (गुजरात में) था।
  • बप्पा रावल के समकालीन प्रतिहार शासक नागभट्ट  थे।
  • बप्पा रावल ने एकलिंगनाथ जी मंदिर का निर्माण कैलाशपुरी (उदयपुर) में करवाया गया था इसी मंदिर के पास हारित ऋषि का आश्रम स्थित है।

बप्पा रावल द्वारा निर्मित मंदिर

  1.   एकलिंगनाथ जी मंदिर (कैलाशपुरी) उदयपुर – कुल देवता 
  2.   आदिवराह मन्दिर (कैलाशपुरी)
  3.   सास-बहू मंदिर (नागदा)
  • सी वि वैद्य ने बप्पा रावल को चार्लसमार्टिन की संज्ञा दी 
  • बप्पा रावल मेवाड़ के प्रथम शासक थे जिन्होंने सोने का सिक्का चलाया जो अजमेर से प्राप्त हुआ जिसका वजन  115 ग्रेन था जिस पर कामधेनु (नंदी), बोप्प शब्द, त्रिशुल अंकित है।

Note – G.H ओझा के अनुसार मेवाड़ में सर्वप्रथम सोने के सिक्के बप्पा रावल ने चलाएँ।

  • 753 ई. में बप्पा रावल ने राजकार्य से सन्यास लिया। बप्पा रावल की मृत्यु 810 ई. में 97 वर्ष की आयु मे।
  • बप्पा रावल की समाधि कैलाशपुरी (उदयपुर) में स्थित है।
  • ओझा के अनुसार बप्पा रावल की मृत्यु नागदा में हुई लेकिन कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार बप्पा रावल की मृत्यु खुरासन में हुई।

अल्लट या आलू रावल

  • उपाधि – आलु रावल
  • प्रथम शासक जिन्होंने नौकरशाही व्यवस्था की शुरुआत की ।
  • इनका विवाह हूण राजकुमारी हरियादेवी से हुआ था – प्रथम  अन्तर्राष्ट्रीय विवाह
  • इन्होनें आहड़ को अपनी नई राजधानी बनाया ( पहले नागदा )
  • इनके शासनकाल का आहड़ में सारणेश्वर मंदिर का शिलालेख प्राप्त हुआ।
  • जगत गाँव उदयपुर में  जगत अम्बिका मन्दिर माता के मंदिर का निर्माण करवाया जिसे मेवाड़ का खजुराहो कहा जाता हैं 
  • इस मन्दिर को शक्तिपीठ भी कहा जाता है।
  • अल्लट के पश्चात उत्तराधिकारी – नरवहन, शालवाहिन हुए थे।

शक्ति कुमार 

  • मालवा के शासक मुंज परमार ने शक्तिकुमार को पराजित किया था। उस आक्रमण के समय राष्ट्रकूट शासक धवल ने शक्ति कुमार की सहायता की थी।
  • मुंज परमार के छोटे भाई नरसंवसाक के पुत्र भोज परमार (त्रिभुवन परमार) ने चित्तौड़गढ़ में त्रिभुवन नारायण मंदिर का निर्माण करवाया जिसे वर्तमान में मोकल मंदिर के नाम से जाना जाता है।
  • शक्ति कुमार के पश्चात बनने वाले उत्तराधिकारी अम्बा प्रसाद, शुचि वर्मा, हस्तपाल हुए थे।

वैरिसिंह

  •  आहड़ नगर के परकोटे का निर्माण करवाया।

विजय सिंह

रण सिंह या कर्ण सिंह  

  • इनके शासन काम गुहिल वंश दो शाखाओ में बंट गया
    • रावल शाखा – रणसिंह के पुत्र खेम सिंह ने चित्तोड़ पर शासन किया  और 
    • राणा शाखा – रण सिंह का पुत्र राहप सिसोदा ठिकाने पर चला गया व सिसोदिया वंश की नीव रखी 

रावल सामंत सिंह

  • रावल सामंत सिंह का विवाह पृथ्वीराज चौहान तृतीय की बहन के साथ हुआ था  
  • तराइन के प्रथम युद्ध 1191 ई. में पृथ्वीराज तृतीय का सहयोग करने वाले मेवाड़ के शासक। इस युद्ध में सामंतसिंह वीरगति को प्राप्त हुए थे।
  • सामंत सिंह के समकालीन जालौर के शासक कीर्तिपाल चौहान थे कीर्तिपाल चौहान ने सामंतसिंह को पराजित कर आहड़ पर अधिकार कर लिया।
  • सामंत सिंह के उत्तराधिकारी कुमार सिंह ने आहड़ पर पुन: अधिकार स्थापित किया।

रावल जैत्रसिंह 1213-1253 ई.

  • जैत्र सिंह चित्तौड़गढ़ को राजधानी बनाने वाला प्रथम शासक था। 
  • रावल जैत्र सिंह को मेवाड़ में नव शक्ति का संचारक माना जाता हैं। 
  • डॉ.दशरथ शर्मा ने रावल जैत्रसिंह को चित्तौड़गढ़ का प्रथम विजेता कहा है।
  • इनके समकालीन दिल्ली का शासक इल्तुतमिश था।
  • रावल जैत्रसिंह के समकालीन मालवा शासक देवपाल परमार था जिसे जैत्रसिंह ने पराजित किया।
  • रावल जैत्रसिंह ने गुजरात के गुर्जर प्रतिहार शासक वीर धवल व लवण्य प्रसाद, नाडोल के चौहान शासक उदयसिंह को पराजित किया।
  • उदयसिंह ने मेवाड़ के साथ मैत्रीपूर्व संबंध स्थापित करने हेतु अपनी पुत्री रूगादेवी का विवाह जैत्रसिंह के पुत्र तेजसिंह के साथ किया।

भूताला का युद्ध :- 1226/1227

  • मध्य – जैत्रसिंह (मेवाड़ ) व इल्लतुतमिश ( दिल्ली )
  • 1226 ई. में जैत्रसिंह व दिल्ली शासक इल्तुतमिश के मध्य राजसंमद में भूताला का युद्ध लड़ गया, जिसमें जैत्रसिंह विजेता रहा।

Note – गोपीनाथ शर्मा के अनुसार इस युद्ध का समय 1222 ई.– 1229 ई. के मध्य हैं।

  • इस युद्ध के पश्चात मुस्लिम सैनिकों ने आहड़ व नागदा को क्षति पहुँचाई जिस कारण जैत्रसिंह ने अपनी राजधानी चित्तौड़गढ़ को बनाया गया ।
  • इल्तुतमिश के पश्चात् दिल्ली का मुख्य शासक नासिरुद्दीन बना।
  • नासिरद्दीन का भाई जलालुद्दीन कन्नौज (U.P.) का शासक था।
  • 1248 ई. में मेवाड़ शासक जैत्रसिंह द्वारा जलालुद्दीन को शरण देने पर नासिरुद्दीन द्वारा असफल आक्रमण किया गया।

Note – दशरथ शर्मा के अनुसार इनका शासन काल मध्यकालीन मेवाड़ का स्वर्ण युग था 

रावल तेजसिंह 1253 ई. – 1273 ई.

  • शासनकाल – 1253 ई. – 1273 ई.
  • इनकी उपाधियाँ – महाराजाधिराज, परमभट्टारक, उमापतिवार लब्ध प्रौढ़प्रताप (शक्तिशाली व उदारक शासक)”  आदि 
  • इनके शासनकाल में ही मेवाड़ का प्रथम चित्रित ग्रंथ श्रावक प्रतिक्रमण चूर्णी 1260 ई. में कमलचन्द्र नामक चित्रकार द्वारा चित्रित किया गया था।
  • वर्तमान में यह ग्रन्थ पाटन में सुरक्षित हैं 
  • मेवाड़ चित्र शैली राजस्थान की सबसे प्राचीन चित्र शैली हैं 
  • 1255–56 ई. में दिल्ली सुल्तान नासिरुद्दीन ने कुतलुग खाँ को कैद करने हेतु मेवाड़ पर बलवन के नेतृत्व में आक्रमण किया लेकिन वह आक्रमण असफल रहा।
  • इनके समकालीन दिल्ली का शासक नासिरुद्दीन था 
  • तेजसिंह ने चित्तोड़ में श्यामपार्श्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया।
  • 1260 ई. में गुजरात के शासक बीसलदेव को पराजित कर “उमापतिवार लब्ध प्रौढ़प्रताप (शक्तिशाली व उदारक शासक)” की उपाधि धारण की।

रावल समरसिंह 1273 ई. – 1302 ई.

  • शासनकाल – 1273 ई. – 1302 ई. तक
  • इनकी उपाधि – त्रिलोका
  • इन्होने मेवाड़ में प्रथम बार जीव हत्या पर प्रतिबंध अपने दरबारी विद्वान ( जैन) रत्नप्रभ सूरी व पार्श्वचन्द्र के कहने पर लगाया था ।
  • इनके प्रमुख दरबारी विद्वान – भावशंकर, दयाशंकर, रत्नप्रभ सूरी, पार्श्वचन्द्र जैन 
  • प्रमुख शिल्पी – कर्मसिंह, पद्मसिंह व केल्लसिंह
  • समर सिंह के समकालीन दिल्ली शासक :-
    • जलालुद्दीन खिलजी (1290 ई. – 96 ई.)
    • अलाउद्दीन खिलजी (1296 ई.– 1316 ई.)
  • 1299 ई. में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति उलूग खां के गुजरात अभियान पर जाते समय समरसिंह ने उलूग खां को आर्थिक वसूला था ।
  • समर सिंह के शासनकाल के  कुल 8 शिलालेख प्राप्त हुए :-
    • आबु शिलालेख
    • दरीबा शिलालेख
    • चीरवा शिलालेख
    • पाँच चित्तौड़गढ़ शिलालेख
  •  रावल समरसिंह के दो पुत्र थे 
  • कुंभकर्ण – कुंभकर्ण नेपाल चला गया और  वंहा गुहिल वंश की स्थापना की । नेपाल का राजवंश यही से निकला।
  • रतनसिंह –  रतन सिंह मेवाड़ का अगला शासक बना। 
  • नेपाल के शासको को भी ‘राणा कहा जाता हैं ।
  • 1302 ई. में समरिसंह की मृत्यु हो गई।

रावल रतनसिंह 1302 ई.- 1303 ई.

  • रावल समरसिंह के पश्चात् रावल रतनसिंह ने मेवाड़ का शासक बना
  • इसका शासनकाल 1302 ई.- 1303 ई. तक का था।
  • रावल रतन सिंह रावल शाखा का अंतिम शासक था। 
  • इनका दरबारी विद्वान राघव चेतन था।

रानी पद्मिनी –

  • रानी पद्मिनी सिंहल द्वीप (श्रीलंका) के राजा गंधर्वसेन व रानी चंपावती की पुत्री थी।
  • पद्मिनी की सुन्दरता का बखान हीरामन जाति का तोला करता था।
  • रानी पद्मिनी रतनसिंह का गधर्व विवाह हुआ।
  • पद्मिनी व रतनसिंह के विवाह के पश्चात् गौरा ( रानी पद्मिनी के चाचा ) – बादल ( रानी पद्मिनी के भाई ) व 1600 महिलाऐं पद्मिनी के साथ मेवाड़ आई।
  • राघव चेतन एक जाना – माना तांत्रिक था जिसका पता चलने पर रतनसिंह ने राघव चेतन को मेवाड़ छोड़ने का आदेश दिया। 
  • तत्पश्चात् राघव चेतन अल्लाउद्दीन खिलजी की शरण में गया।
  • अलाउद्दीन को पद्मिनी की जानकारी राघव चेतन ने दी । ( पद्मावत ग्रन्थ के अनुसार )

अल्लाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के कारण –

  • अल्लाउद्दीन खिलजी की साम्राज्यवादी व महत्वकांक्षी निति।
  • चित्तोड़ का मालवा तथा गुजरात के बिच में पड़ना ( यह आक्रमण करने का सबसे प्रभावी कारण था )
  • रानी पद्मिनी की प्रबल आकांक्षा ( मलिक मोहम्मद जायसी के ग्रन्थ पद्मावत के अनुसार )
  • डॉ. दशरत शर्मा के अनुसार चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण का मुख्य कारण दुर्ग का सामरिक महत्व था। 
  • अल्लाउद्दीन खिलजी की सेना आक्रमण हेतु 28 जनवरी 1303 को रवाना हुई जबकि अल्लाउद्दीन खिलजी को  26 अगस्त, 1303 को चित्तौड़ पर विजय प्राप्त हुई।
  • अल्लाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय रावल रतनिसंह के सेनापति गौरा-बादल (चाचा-भतिजा) थे 
  • गौरा-बादल ने केसरिया किया और अपने शौर्य का परिचय देते हुए रतनसिंह और गौरा व बादल लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
  • इधर चित्तोड़ गढ़ दुर्ग में अल्लाउद्दीन खिलजी से अपने बचाव के लिए रानी पद्मिनी ने 1600 महिलाओं के साथ 26 अगस्त 1303 को जौहर किया। 

चित्तोड़  गढ़ का प्रथम शाका – 1303 ई.

केशरिया – रावल रतनसिंह के नेतृत्व में हुआ 

जोहर – रानी पद्मिनी के नेतृत्व में हुआ 

  • अल्लाउद्दीन खिलजी ने चित्तोड़ गढ़ का नाम खिज्राबाद रख कर इसे अपने पुत्र खिज्र खा को सौंप दिया। खिजरा खा ने चित्तोड़ पर 1303 ई. -1313 ई. तक शासन किया।
  • ग्रन्थ पद्मावत में इस युद्ध में रतनिसंह को हृदय, पद्मिनी की बुद्धि व अलाउद्दीन को माया की संज्ञा दी गई है।
  • चित्तौड़ विजय के पश्चात् अल्लुद्दीन खिलजी ने गंभीरी नदी पर बांध बनवाया।
  • चित्तौड़गढ़ में था बाई पीर की दरगाह पर शिलालेख लिखवाया।
  • सिसोदा ठिकाने के सामंत लक्ष्मण ने सिंह चित्तोड़ किले रक्षा में अपने 7 पुत्रो सहित अपना बलिदान दिया। 
  • Note – 1303 के आक्रमण के बाद। 
  • लेकिन G H ओझा इस घटना को काल्पनिक बताते हैं और आक्रमण ( यह आक्रमण 1303 वाला नहीं हैं ) का कारण अल्लाउद्दीन खिलजी का गुजरात तक अधिकार करने की लालसा बताते हैं जबकि गोपीनाथ शर्मा इस आक्रमण को काल्पनिक नहीं वास्तविक मानते हैं 
  • पद्मावत ग्रन्थ – 1540 ई. में शेरशाह सूरी के शासनकाल में अवधी भाषा में पद्मावत ग्रन्थ की रचना मालिक मुहम्मद जायसी द्वारा की गई। 
  • खजाइन उल फतुह या तारीख ए अलाइ – इसका रचनाकार आमिर खुशरो था जो  अल्लाउद्दीन के सैनिक अभियान में साथ था। इस ग्रन्थ में आमिर खुशरो ने अल्लाउद्दीन खिलजी की चित्तौड़ विजय का सजीव वर्णन किया 
  • तारीख ए फरिश्ता – इसका लेखक फरिश्ता पद्मिनी को रावल रतन सिंह की पुत्री बताता हैं। 
  • 1313 ई. 1320 ई. तक चित्तौड़ शासक मालदेव (जालौर शासक कान्हड़देव का भाई) रहा।
  • मालदेव ने सिसोदा सामन्त हम्मीर के साथ अपनी पुत्री का विवाह किया।
  • 1320 ई.-1326 ई. तक चितौड़गढ़ पर जैसासिंह का अधिकार रहा।
  • राणा हम्मीर ने जैसासिंह को पराजित कर चित्तौड़गढ़ पर अधिकार किया।

राणा हम्मीर (1326-1364 ई.)

उपनाम या उपाधि –

  • राणा हम्मीर को कीर्ति स्तम्भ प्रसस्ति में विषम घाटी पंचानन ( विषम समय में सिंह के समान ) की उपाधि दी गई हैं 
  • जयदेव द्वारा रचित गीत गोविन्द व महाराणा कुम्भा द्वारा लिखित टिका रसिक प्रिया में राणा हम्मीर को वीर राजा कहा गया हैं।
  • इन्हे मेवाड़ का उद्धारक भी कहा जाता हैं ( भामाशाह को भी मेवाड़ का उद्धारक कहा जाता हैं )
  • कर्नल जेम्स टॉड ने हिंदू राजा की संज्ञा दी हैं। कर्नल जेम्स टॉड ने राणा हम्मीर के लिए लिखा कि “भारत में हम्मीर ही एक प्रबल राजा बचा है, बाकि राजवंश नष्ट हो गये।“
  • राणा हम्मीर को  छापामार या गुरीला युद्ध पद्धति का जनक माना जाता है। जिसका सर्वाधिक प्रयोग राणा उदयसिंह व महाराणा प्रताप ने किया। 
  • इन्हे सिसोदिया वंश का संथापक व आदिपुरुष माना जाता हैं 
  • राणा हम्मीर ने चित्तौड़गढ़ में अन्नापूर्णा माता मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • 1364 ई. में हम्मीर की मृत्यु हो गई।

क्षेत्र सिंह या खेता ( 1364 – 1382 )

  • इन्होने मालवा के शासक दिलावर खां को पराजित किया। 
  • चाचा व मेरा नामक इनके दो दासी पुत्र थे जिन्होंने राणा लाखा के पुत्र राणा मोकल की हत्या की।   

लक्ष्मणसिंह या राणा लाखा (1382-1421 ई.)

दरबारी विद्वान् – 

  1. झोटिंग भट्ट – इनको राणा लाखा ने पीपली गांव दान में दिया। 
  2. धनेश्वर भट – इनको पंचदेवालय नामक गांव दान में दिया। 
  • इन्हें गौरवदान व गरिमादान पद्धति का जनक कहा जाता है।
  • राणा लाखा के काल में पिछु या छिड़ीमार नामक बन्जारे ने पिछौला झील ( वर्तमान उदयपुर में ) का निर्माण करवाया।
  • इनके शासन काल में जावर (उदयपुर) में चाँदी की खान निकली।
  • राणा लाखा ने समकालीन दिल्ली शासक ग्यासुद्दीन तुगलक को पराजित किया था ।

राणा लाखा का हंसा बाई से विवाह –

  • राणा लाखा के समकालीन मारवाड़ का शासक राव चूड़ा था।
  • राव चूड़ा का पुत्र – रणमल, पुत्री – हंसाबाई थी। 
  • राव चूड़ा के पुत्र रणमल ने अपनी बहिन हंसा बाई का विवाह सशर्त की – “हंसाबाई का पुत्र ही मेवाड़ का उत्तराधिकारी होगा” लाखा से करवाया।
  • परिणाम स्वरूप राणा लाख व हंसा बाई से राणा मोकल का जन्म हुआ जो मेवाड़ के अगले उत्तराधिकारी बने। 

कुंवर चूड़ा – मेवाड़ का भीष्म पितामह 

  • राणा लाखा का बड़ा पु­त्र राणा चुंडा ने जीवन भर मेवाड़ की सेवा करने की प्रतिज्ञा ली। तथा वचन दिया की मै या मेरा कोई भी वंशज मेवाड़ का उत्तराधिकारी नहीं बनेगा। इस कारण इन्हे मेवाड़ का “भीष्म पितामह” एवं “मेंवाड़ का राम” कहा जाता है।
  • कालान्तर में चूड़ा के वंशज चुण्डावत कहलाये। 
  • मेवाड़ में पट्टे जारी करने का अधिकार चुंडावतों का था। 
  • सलूम्बर के चुण्डावत रावत जी कहलाते थे जो मेवाड़ महाराणाओं के तलवार बांधते थे। 
  • चुण्डावत हरावल सेना का नेतृत्व करते थे।  

राणा मोकल (1421-1433 ई.)

  • राणा मोकल ने चित्तोड़ गढ़ में समधीश्वर महादेव मंदिर का निर्माण करवाया।  
  • राणा मोकल को मेवाड़ में तुलादान पद्धति के जनक मन जाता है।
  • मोकल ने जीवनकाल में कुल 25 बार तुलादान किया।
  • इनके दरबारी विद्वान – विष्णुभट्‌ट, योगेश्वर भट्‌ट।
  • प्रमुख शिल्पी –  धन्ना, पन्ना, मन्ना, वीसल
  • राणा मोकल अल्पायु में शासक बनने के कारण रणमल राठौड़ को उनका संरक्षक नियुक्त किया। 
  • मेवाड़ में वेदशालाओं को स्थापित कराने का श्रेय राणा मोकल को दिया जाता हैं।
  • इन्होने झालावाड़ में विष्णु वराह मंदिर का निर्माण करवाया।
  • राणा मोकल ने एकलिंगनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया, इस कारण इस मंदिर को वर्तमान में मोकल मंदिर कहा भी जाता है।
  • रणमल राठौड़ ने मोकल के काल में मेवाड़ में राठौड़ों का प्रभाव बढ़ाते हुए उच्च पदो पर नियुक्तियाँ शुरू की।
  • जिससे राठौड़ो के बढ़ते प्रभाव से नाखुश होकर चाचा व मेरा और महपा पंवार नामक सरदारो ने राणा मोकल की हत्या की।
  • राणा मोकल की मृत्यु के पश्चात राणा कुम्भा मेवाड़ के अगले शासक हुए।

राणा कुंभा (1433-1468 ई.)

  • राणा कुम्भा का जन्म – 1403 ई.
  • पिता – मोकल
  • माता – सौभाग्यदेवी
  • पत्नी – कुंभलमेरू
  • पुत्र – रायमल, ऊदा
  • पुत्री – रमाबाई (रमाबाई संगीत व साहित्य में निपुण थी इस कारण जावर शिलालेख (उदयपुर) में वागीश्वरी कहा गया हैं।)
  • राज्याभिषेक – 1433 ई. चित्तौड़गढ़
  • गुरू – हिरनांद आर्य
  • संगीतगुरू – सारंग व्यास, कान्हा व्यास

राणा कुंभा की प्रमुख उपाधियाँ 

  • हालगुरू – पहाड़ी दुर्गो का स्वामी होने के कारण। 
  • राज गुरु – राजनीती में दक्ष होने के कारण। 
  • हिन्दु सुरताण – मुस्लिम इतिहासकारो द्वारा। 
  • अभिनव भरताचार्य – संगीत में विपुल ज्ञान के कारण।
  • चापगुरू – धनुर्विद्या में निपुण होने के कारण। 
  • दानगुरू – 
  • युद्धगुरू –
  • संगीतगुरू –
  • राणे-राय –
  • साहित्य गुरू –
  • राव – राय –
  • स्थापत्य गुरू –
  • अश्वपति –
  • नरपति –
  • शैवगुरू –
  • राणा कुम्भा ने शासक बनते सबसे पहले  के पिता के हत्यारें (चाचा, मेरा व महपा पंवार ) से बदला लेने की योजना बनाई। कुम्भा के शासक बनते ही मालवा के शासक मुहमद खिलजी प्रथम की  शरण में चले गए (चाचा, मेरा व महपा पंवार ) । 
  • राणा कुम्भा ने मालवा के शासक मुहमद खिलजी प्रथम पर आक्रमण किया।

सांरगपुर का युद्ध – 1437 ई. मध्यप्रदेश ( मालवा )

  • सारंगपुर का युद्ध राणा कुम्भा व महमुद खिलजी प्रथम के मध्य हुआ। 
  • जिसमे राणा कुम्भा की विजय हुए। 
  • राणा कुम्भा की इस विजय को मालवा विजय कहा गया तथा इस विजय 
  • ( सारंगपुर ) के उपलक्ष में चित्तैड़गढ दुर्ग में विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया गया ।
  • वीर विनोद ग्रंथ के अनुसार सारंगपुर युद्ध 1439 ई. में हुआ।

विजय स्तम्भ –

  • विजय स्तम्भ को विष्णु स्तम्भ भी कहा जाता हैं। 
  • इसका निर्माण 1440 – 1448 के मध्य हुआ। 
  • विजय स्तम्भ कुल 9 मंजिला ईमारत हैं 

राठौड़ों के बढ़ते प्रभाव को रोकना –

  • राणा कुम्भा में 1438 ई. में दासी भारमली की सहायता से रणमल राठौड़ की हत्या करवा दी।
  • जिससे रणमल के पुत्र राव जोधा मेवाड़ को छोड़कर मण्डोर (जोधपुर – मारवाड़ ) चले गये।
  • अंततः हंसाबाई के सहयोग से राव जोधा व राणा कुम्भा के बिच आंवल – बांवल की सन्धि हुई।

आंवल – बांवल की संधि  (1452 – 53 ई.)

  • यह संधि मेवाड़ के राणा कुम्भा और मारवाड़ के राव जोधा के बिच हुई। 
  • यह सन्धि सोजत (पाली) नामक स्थान पर हुई।
  • इस सन्धि के तहत मेवाड़ व मारवाड़ की सीमाओं का निर्धारण हुआ।
  • जंहा तक आंवला के पेड़ हैं वहा तक मेवाड़ और जंहा बबुल के पेड़ हे वंहा तक मारवाड़ हॉगा। 
  • इस सन्धि के के पश्चात राव जोधा ने पुत्री शृंगार देवी का विवाह कुम्भा के पुत्र रायमल के साथ करवाय ।

राणा कुंभा के समकालीन शासक

  • नागौर – फिरोज खाँ, शम्स खाँ तथा मुजाहिद खाँ
  • गुजरात – (5 शासक हुए) कुतुबुद्दीन शाह
  • सिरोही – अचलदास खिंची
  • हड़ौती – सांडा (कोटा) भाणा (बूंदी)
  • मालवा – महमूद खिलजी I
  • 1442 ई. में महमूद खिलजी I ने कुंभलगढ़ व चित्तौड़गढ़ पर असफल आक्रमण किया।
  • महमूद खिलजी प्रथम ने बाण माता मूर्ति को खण्डित किया।
  • महमुद खिलजी प्रथम  ने माण्डलगढ़ (भीलवाड़ा) पर 1446, 1446 एवं 1456 ई. में तीन बार असफल आक्रमण किया।
  • 1444 ई. में राणा कुंभा के बहनोई अचलदास खीची पर महमूद खिलजी ने आक्रमण कर गागरोन दुर्ग झालावाड़ पर अधिकार किया।
  • 1455 ई. में महमूद खिलजी प्रथम ने अजमेर में राणा कुंभा के किलेदार गजाधर सिंह को पराजित कर यहाँ अधिकार किया एवं किलेदार नियामतुल्ला खाँ को नियुक्त कर इसे सैफ खाँ की उपाधि दी।

राणा कुंभा का गुजरात से संबंध

  • राणा कुंभा के समकालीन गुजरात में कुल 5 शासक आये।
  • 1455 ई. में गुजरात के शासक कुतुबुद्दीन शाह ने कुंभलगढ़ पर असफल आक्रमण किया।

चंपानेर संधि- 1456 ई.

  • यह संधि गुजरात शासक कुतुबुद्दीन शाह व मालवा शासक महमूद खिलजी प्रथम के मध्य हुई। 
  • इनकी योजना थी की गुजरात और मालवा की सयुक्त सेना के मेवाड़ आक्रमण से राणा कुम्भा को पराजित कर मेवाड़ राज्य को आधा आधा आपस में बाँट लेंगे  
  • इस संधि में कुतबुद्दीन शाह को निमंत्रण महमुद खिलजी-I द्वारा चांद खाँ के माध्यम से भेजा गया।

चंपानेर संधि के कारन गुजरात व मालवा की संयुक्त सेना 1457 ई. में राणा कुंभा पर आक्रमण किया।

बदनौर युद्ध या बैराठगढ़ का युद्ध- 1457 ई.

  • बदनौर भीलवाड़ा में स्थित हैं।
  • इस युद्ध में एक तरफ मेवाड़ ( राणा कुम्भा ) की सेना थी तो दूसरी तरफ गुजरात ( शासक कुतुबुद्दीन शाह ) व मालवा ( महमूद खिलजी ) की सयुक्त सेना थी। 
  • गुजरात और मालवा की सयुक्त सेना होने के बाद भी इस युद्ध में राणा कुम्भा विजय हुए 
  • कुंभा ने बदनौर ( भीलवाड़ा ) विजय के उपलक्ष में कुशालमाता मंदिर ( बदनौर- भीलवाड़ा ) का निर्माण करवाया।
  • 1458 ई. में राणा कुंभा ने नागौर शासक शम्स खाँ के उपर आक्रमण किया।
  • शम्स खां ने अपनी पूत्री नगा का विवाह गुजरात शासक कुतुबुद्दीन शाह के साथ कर सैनिक सहायता मांगी।
  • 1458 ई. में शम्स खाँ व गुजरात की संयुक्त सेना को राणा कुंभा ने पराजित किया और नागौर पर अधिकार किया।
  • 1458 ई. में आबु कुन्थन देव की सहायता से कुतुबुद्दीनशाह ने राणा कुंभा पर आक्रमण किया परन्तु वह असफल रहा ।
  • 1459 ई. में गुजरात शासक फतेह खां बना जो मुहम्मद शाह बेगड़ा के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
  • 1460 ई. में मुहम्मद शाह बेगड़ा ने जुनागढ़(GJ) शासक मण्डुलिक ( राणा कुंभा का दामाद – रमाबाई का पति ) के उपर आक्रमण किया।
  • 1460 ई. कुंभा व मण्डुलिक की सेना ने बेगड़ा को पराजित किया।

कुंभा की स्थापत्य कला

  • वीर विनोद ग्रन्थ के अनुसार मेवाड़ में स्थित कुल 84 दुर्गों में से 32 दुर्गों का निर्माण राणा कुंभा ने करवाया इस कारण कुंभा को स्थापत्य गुरु कहा जाता है।

दुर्ग

कुंभलगढ़ दुर्ग  
  • यह दुर्ग राजसमंद में स्थित हैं। 
  • कुंभलगढ़ दुर्ग का वास्तुकार  मण्डन था। 
चित्तौड़गढ़ दुर्ग
  • चित्तौड़गढ़ दुर्ग का आधुनिक निर्माता राणा कुम्भा को कहा जाता है।
  • चित्तौड़गढ़ दुर्ग को राणा कुंभा के काल में चित्रकूट कहा जाता था।
  • चित्तोड़गढ़ दुर्ग का मूल निर्माता चित्रांगद मौर्य ने करवाया था। 
  • चित्तौडगढ़ दुर्ग में मालवा विजय के उपलक्ष्य में 9 मंजिल विजय स्तंभ का निर्माण राणा कुंभा ने करवाया।
  • विजयस्तंभ का जीर्णोद्धार मेवाड़ महारणा स्वरूप सिंह ने करवाया था।
बैराठगढ़ –  भीलवाड़ा में 
भौमट दुर्ग – उदयपुर
अचलगढ़ दुर्ग – सिरोही
बसंती दुर्ग – माउंट आबू, सिरोही

मंदिर

  • चित्तौडगढ़ में राणा कुंभा ने कुंभश्याममंदिर का निर्माण करवाया जो पंचायतन शैली में निर्मित हैं ।
  • बदनौर युद्ध विजय के उपलक्ष में बदनौर (भीलवाड़ा) में कुशालमाता या बदनौर माता का निर्माण करवाया।
  • राणा कुंभा ने दिल्ली सुल्तान सैय्यद मोहम्मद शाह को पराजित कर दिल्ली में बिरला मंदिर का निर्माण करवाया।
  • कुंभलगढ़ में मामादेव कुण्ड का निर्माण करवाया। 
  • राणा कुंभा के काल में मंत्री धारणकशाह द्वारा वास्तुकार देपाक के निर्देशन में रणकपुर (पाली) का  जैन मंदिर का निर्माण करवाया गया। इस मंदिर को चौमुखा मंदिर, स्तंभों का वन इत्यादि नामों से जाना जाता है।
  • राणा कुंभा के काल में ही चित्तौडगढ़ दुर्ग में वेलका द्वार श्रृंगार चंवरी मंदिर का निर्माण करवाया गया।

श्रृंगार चंवरी मंदिर  – जैन मंदिर

यहां ( श्रृंगार चंवरी ) पर राणा कुम्भा की पुत्री रमा बाई ( वागीश्वरी ) का विवाह हुआ था ।

राणा कुंभा का साहित्य में योगदान

कुंभा द्वारा लिखित ग्रंथ –

  • संगीत राज  – 5 भागों में विभक्त
    • (i) पाठ्यरत्न कोष
    • (ii) वाद्यरत्न कोष
    • (iii) नाट्य/नृत्य रत्न कोष
    • (iv) गीत रत्न कोष
    • (v) रस रत्न कोष
  • संगीत मीमांसा
  • संगीत रत्नाकार
  • कामशास्त्र परआधारितग्रंथ – काम प्रबोध
  • सूड़ प्रंबंध
  • एकलिंग महात्म्य :- राणाकुंभा तथा कान्हा तथा द्वारा रचित
  • कुंभा द्वारा लिखित प्रथम भाग, राजवर्णन कहलाता है।
  • विजयस्तंभ की 9 वीं मंजिल पर राणा कुंभा ने कीर्ति प्रशस्ति की रचना करवाई।
  • इस प्रशस्ति की रचना कवि अत्रि ने शुरू लेकिन रचना पूर्ण उनके पुत्र कवि महेश ने की।
  • कुंभा के प्रमुख दरबारी विद्वान – भुवनसुन्द्र (जैन विद्वान), जयचंद्र सूरी, सोमदेव सोमसुंदर, महेशचंद्र सूरी।
  • वास्तुकार (शिल्पी) – मण्डन, नाथा, गोविंद, पौजा, पूंजा, अत्रिभट्‌ट, महेश भट्‌ट, दाना
  • मण्डन के प्रमुख ग्रंथ –
  • वैद्य मण्डन – इस ग्रंथ में व्याधियों, बीमारियों का निदान बताया गया है।
  • शकुन मण्डन – शकुन शास्त्र का वर्णन
  • कोदेन मण्डन – इस ग्रंथ में धनुर्विद्या के बारे में जानकारी दी गई है।
  • प्रासाद मण्डन – इस ग्रंथ में देवालय निर्माण की जानकारी दी गई है।
  • राजवल्लभ मण्डन – 14 अध्यायों में विभक्त ग्रंथ इस ग्रंथ से आवासीय भवन एंव राजप्रासादों के निर्माण से संबंधित जानकारी दी गई है।
  • रूपमण्डन – 6 अध्यायों में विभक्त है।
  • यह ग्रंथ मूर्तिकला से संबंधित है।
  • छठे अध्याय में जैन धर्म की मूर्तियों से संबंधित वर्णन है।
  • रूपावतर मण्डन (मूर्ति प्रकरण) – मूर्तिकला से संबंधित यह ग्रंथ 8 अध्यायों में विभक्त है।
  • वास्तुमण्डन तथा वास्तुकार में वास्तुकला का वर्णन है।
  • मण्डन के भाई का नाम नाथा तथा इनके ग्रंथ का नाम वास्तु मंजरी
  • मण्डन के पुत्र का नाम गोविंद
  • गोविंद के प्रमुख ग्रंथ – कलानिधि, उद्धार धारिणी, द्वारा दीपिका
  • राणा कुंभा की हत्या 1468 ई. में मामादेव कुण्ड के पास कुंभलगढ़ ( राजसमंद ) में पुत्र ऊदा द्वारा की गई।
  • इस लिए इतिहास में उदा को मेवाड़ का पितृहन्ता कहते हैं
  • Note – कर्नल जेम्स टॉड ने कहा – कुंभा में लाखा जैसी प्रेम कला एवं हम्मीर जैसी शक्ति थी। जिसने मेवाड़ के झंडे को घग्घर नदी के तट पर फहराया।

रायमल 1743 – 1509


❖ पिता – कुम्भा
❖ एकलिंग मंदिर का वर्तमान स्वरूप बनवाया |
❖ रायमल की पत्नी श्रंगार कंवर में घोसुण्डी में बावड़ी बनवाई |
❖ घोसुण्डी अभिलेख :-
1. 2 वी शताब्दी ई.पू.,
2. वैष्णभ धर्म की जानकारी देता है |
3. राज. का प्राचीनतम अभिलेख ,
4. राजा सर्वतात द्वारा अश्मेघ यज्ञ करवाया ,की जानकारी देता है|

❖ पृथ्वीराज :-


1. रायमल का सबसे बड़ा बेटा था | इसे उड़ना राज कुमार कहा जाता था |
2. पत्नी – तारा – अपनी पत्नी के नाम अजमेर दुर्ग का नाम तारागढ़ रखा |
3. छतरी – कुम्भलगढ़ किले में (12 खंभे)

❖ जयमल :-


1. रायमल का बेटा
2. सौलंकियों से युद्ध लड़ते मारा गया |

संग्रामसिंह (राणा सांगा) 1509- 1528


❖ रायमल का बेटा
❖ सांगा ने श्रीनगर (अजमेर ) के कर्मचंद पंवार ले पास शरण ली |

❖ इब्राहिम लोदी (दिल्ली ) :- खातोली का युद्ध 1571(कोटा) -सांगा की विजय
लाड़ी का युद्ध 1518 (धौलपुर ) _ सांगा की विजय
❖ गागरोन का युद्ध 1519 :- सांगा v/s महमूद खिलजी (मालवा ) ( सांगा की विजय )
❖ सांगा ने चंदेरी के मेदिनीराय को गागरोन का दुर्ग दिया |

❖ बयाना का युद्ध :- 16 फरवरी 1527 :-
❖सांगा और बाबर के बीच (सांगा की विजय )
❖इस युद्ध मे बाबर का सेनापति – मोहम्मद सुल्तान मिर्जा
❖ बयाना दुर्ग का रक्षक – मेहंदी ख्वाजा

खानवा का युद्ध :-


❖ भरतपुर में 17 मार्च 1527 (वीर – विनोद के अनुसार 16 मार्च )
❖ राणा सांगा और बाबर के बीच ( बाबर विजय )
❖ बाबर ने जिहाद (धर्म युद्ध ) की घोषणा की |
❖ बाबर ने शराब पीना छोड़ दिया |
❖ बाबर ने तमगा कर( मुसलमानो से लिया जाने वाला व्यापारिक कर ) हटा दिया |
❖ सांगा ने इस युद्ध मे राजस्थान के सभी राजाओ को बुलाया (1. पाती परवन नीति ,2. आमेर – पृथ्वीराज,3. मारवाड़ – मालदेव (राजा गंगा ),4. बीकानेर – कल्याणमल (राजा जैतेसी), 5. मेड़ता – वीरमदेव ,6. सिरोही – अर्खेराज देवड़ा ,7. सलूम्बर – रतन सिंह चुंडावत ,8. सादड़ी – झाला अज्ज़ा,9. मेवात – हसन खां मेवाती , 10. महमूद लोदी -इब्राहिम लोदी का भाई,11. चंदेरी – मेदिनीराय , 12. रायसीन- सलहदी तंवर ,13. ईडर – भारमल
❖इस युद्ध मे सांगा घायल हो गया | झाला अज्ज़ा ने युद्ध का नेतृत्व किया |
❖ सलहदी तंवर ने राणा सांगा से विश्वासघात किया |
❖ नागौर के खान जादे मुसलमानों ने भी विश्वासघात किया |
❖ युद्ध मे बाबर की विजय हुई |
❖ इस युद्ध में तुलुगाना पध्दति व तोपखाने का उपयोग बाबर ने किया |
❖ बाबर ने गाजी (धर्म नेता) की उपाधि धारण की |
❖ बसवा (दौसा):- घायल सांगा का इलाज हुआ |
❖ इस्चि (MP) :- सांगा को जहर दिया गया |
❖कालपी (MP) :- सांगा की मृत्यु|
❖मंडल गढ़(भीलवाड़ा) :- सांगा की छतरी |
❖ सांगा की उपाधियों :-
1. हिन्दू पत
2. सैनिको का भग्नावशेष (80 भाव):-
3. हरिदास चारण ने महमूद खिलजी -II को पकड़ा | इसलिये सांगा ने उन्हें 12 गांव दिए |
4. बाबर नामा के अनुसार सांगा के अधीन 7 राजा ,9राव ,104 सरदार थे |
5. सांगा के सबसे बड़े बड़े भोजराज की शादी मीरा बाई से हुई|
6. सांगा के बाद रतनसिंह राजा बना | वह बूंदी के सूरजमल के खिलाफ लड़ता हुआ मारा गया |

विक्रमादित्य 1531-1536


❖ पिता – सांगा , माता – कर्मावती (संरक्षिका )
❖ गुजरात के बहादुर शाह ने 1533 में मेवाड़ प आक्रमण किया |कर्मावती ने रणथंभौर किला देकर संधि की |
❖ बहादुर शाह ने 1534-35 में पुनः आक्रमण किया | कर्मावती ने हुमायूँ को राखी भेजी और सहायता की मांग की
❖ इस समय चितोड़ का दूसरा साका हुआ |
❖ रानी कर्मावती के नेतृत्व में जौहर हुआ |
❖ देवलिया के बाघसिंह (प्रतापगढ़ का पुराना नाम) के नेतृत्व में केसरिया किया गया
❖ बनवीर को चितोड़ का प्रशासक बनाया गया |
❖ बनवीर उड़ना राज कुमार पृथ्वीराज की दासी पुत्र था |
❖ बनवीर ने विक्रमादित्य की हत्या कर दी | पन्ना धाय ने अपने बेटे चंदन का बलिदान देकर उदयसिंह को बचा लिया | कुम्भलगढ़ के आशा देवपुरा ने पन्ना धाय व उदयसिंह को शरण दी |

उदयसिंह 1537-1572


❖ मावली का युद्ध – 1540 (उदयसिंह व बनवीर के बीच (विजय )
❖ 1559 ने उदयसिंह ने उदयपुर की स्थापना |
❖ उदय सागर झील का निर्माण करवाया |
❖1568 में अकबर ने चितोड़ पर आक्रमण किया |
❖ उदयसिंह गिरवा की पहाड़ियों में चला गया |जयमल तथा पन्ना ने किले का नेतृत्व संभाला |
❖ इस समय चितौड़ का तीसरा साका हुआ | जयमल ने कल्ला राठौड़ के कंधो पर बैठकर युद्ध लड़ा |
❖ अकबर ने चितौड़ पर अधिकार कर लिया |
❖ अकबर ने 30000 लोगो का नरसंहार करवाया |
❖ कल्ला राठौड़ – चार हाथों वाले लोक देवता
❖ अकबर की बंदूक का नाम – संग्राम
❖ अकबर जयमल व पन्ना की वीरता से प्रभावित हुआ | तथा इन दोनों की मूर्तियां आगरा के किले में लगवाई |
❖ इस जानकारी का स्रोत – बर्नियर की पुस्तक ट्रेवल्स इन द मुगल एम्पायर में |
❖ बीकानेर के जूनागढ़ दुर्ग में भी जयमल व पन्ना की मूर्तियां है |
❖ 1572 में होली के दिन उदयसिंह की मृत्यु गोगुन्दा में हुई |
❖ उदय सिंह की छतरी – गोगुन्दा |

महाराणा प्रताप 1572-1597

❖ 25 साल शासन
❖ पत्नी – अजब दे पंवार
❖ जन्म 9 मई 1540 कुम्भलगढ़
❖ पिता – उदय सिंह , माता – जयंता बाई सोनगरा |
❖ प्रताप के बचपन का नाम – कीका |
❖ उदय सिंह के छोटे बेटे जगमाल को राजा बना दिया |
❖ प्रताप का राजतिलक कृष्णदास चूंडावत (सलूम्बर ) ने गोगुन्दा में किया होली के दिन |
❖ प्रताप का विधिवत राजतिलक कुम्भलगढ़ में हुआ |
❖ मारवाड़ का चंद्र सेन भी इस राजतिलक में शामिल था |
❖ अकबर ने प्रताप को समझाने के लिए चार दूत भेजे – 1. जलाल खां कोरची 1572 , 2. मानसिंह ,3. भगवंत दास – 1573 ,4. टोडरमल

❖ हल्दी घाटी का युद्ध :- 18 जून 15676 (राणा प्रताप और अकबर के बीच )
❖ अकबर के सेनापति – मानसिंह (पहली बार सेनापति,हाथी मर्दाना )+ आसफ खां
❖ प्रताप के सेनापति- 1. सलूम्बर- कृष्णदास चुंडावत
2. ग्वालियर – रामसिंह तोमर
3. अफगान मुस्लिम – हाकिम खां सूर पठान
4. भीलो का नेता – पुंजा भील
❖ मिहत्तर नामक मुस्लिम सैनिक ने अकबर के अपने की झूठी सूचना दी।
❖ युद्ध में चेतक घायल हो गया तो राणा प्रताप युद्ध भूमि से बाहर चला गया।
❖ झाला मान (बीदा)ने युद्ध का नेतृत्व किया ।
❖ मानसिंह प्रताप को अधीनता स्वीकार नहीं करा सका। अकबर ने मानसिंह तथा आसफ का दरबार मे जाना बंद करवा दिया ।
❖ चेतक की छतरी – बलीचा(राजसमंद)
❖ इतिहासकार : हल्दी घाटी युद्ध का नाम :-
1. अब्दुल फजल : खमनोर का युद्ध
2. बदायुनी : गोगुन्दा का युद्ध
3. जेम्सटॉड : मेवाड़ की थर्मो पॉली
4. आदर्श लाल श्री वास्तव : बादशाह – बाग का युद्ध
❖ मुगल सेना के हाथी :- मर्दाना , गजमुक्ता
❖ मेवाड़ की सेना के हाथी :- लूना , राग प्रसाद ,वीर प्रसाद ,
❖ 1577 में अकबर में खुद मेवाड़ आक्रमण किया और उदयपुर का नाम बदल कर गुम्मदाबाद कर दिया।
❖ कुम्भलगढ़ का युद्ध :- 1. तीन बार आक्रमण 1577,1578,1579
2. मुगल सेनापति शाह वाज खां ने तीन बार आक्रमण किया ।और कुम्भलगढ़ पर अधिकार कर लिया ।
❖ शेरपुर का घटना :- 1580
1. अगरसिंह ने मुगल सेनापति रहीम की बेगमो को गिरफ्तार कर लिया था ।लेकिन प्रताप ने उँन्हे सहसम्मान वापस पुहचाया।
❖ दिवेर का युद्ध :- 1582 ई.(प्रताप की विजय)
1. प्रताप ने मुगल सेना को हरा दिया । अमर सिंह ने मुगल सेनापति सुल्तान खां को मार दिया
2. इस युद्ध मे बांसवाड़ा, प्रतापगढ़,ईडर आदि रियासयो ने प्रताप का साथ दिया । जेम्स टॉड ने इस युद्ध को मेवाड़ का मैराथन कहा।
❖ 1585 में जगनाथ कछवाह ने मेवाड़ पर आक्रमण किया | यह अकबर की तरफ से अंतिम आक्रमण था |
❖ प्रताप ने मालपूरा (टोंक ) पर आक्रमण किया और जीत लिया तथा नीलकंठ महादेव मंदिर बनवाया |
❖ प्रताप ने चावंड को राजधानी बनाया |
❖ चावंड में चामुंडा माता का मंदिर बनवाया |
❖ चावंड से मेवाड़ की चित्रकला प्रारम्भ हुई | मुख्य चित्रकार नासिरूद्दीन
❖ दरबारी विध्दान :-
1. चक्रपाणि मिश्रा – पुस्तक – (i) राज्याभिषेक (ii) मुहूर्तमाला (iii) विश्व वल्लभ ( उद्धान विज्ञान के बारे में )
2. हेमरत्न सूरी :- गौरा बादल री चौपाई
3. सदुलनाथ त्रिवेदी :- इसे प्रताप ने मंडेर की जागीर दी | यह जानकारी उदयपुर अभिलेख 1588 में मिलती है |
4. भामाशाह और ताराचंद :- राणा प्रताप की आर्थिक सहायता की |
5. माला सांदू
6. रामा सांदू
❖ प्रताप ने चितौड़गढ़ व मांडलगढ़ को छोड़कर पूरा मेवाड़ जीत लिया था |
❖ 19 जनवरी 1597 में चावंड में राणा प्रताप की मृत्यु |
❖ प्रताप की छतरी – 8खंभो की छतरी (बांडोली (उदयपुर )
❖ महाराणा प्रताप को मेवाड़ केसरी कहा जाता है |

अमरसिंह प्रथम 1597-1620


❖ मुगल मेवाड़ संधि :- 1615
1. अमरसिंह प्रथम व जहांगीर
2. अमरसिंह ने यह संधि अपने बेटे कर्ण सिंह के दबाव में की |
3. संधि में मेवाड़ के प्रतिनिधि – हरिदास + शुभकरण
4. मुगलो की तरफ से खुर्रम ने संधि की |
❖ संधि की शर्तें ;-
1. मेवाड़ का राणा मुगल दरबार ने नही जाएगा |
2. मेवाड़ के राज कुमार मुगल दरबार मे जाएगा |
3. चितोड़ का किला मेवाड़ को वापस दिया जायेगा पर उसका पुनर्निर्माण नही करवाया जायेगा|
4. युवराज कर्ण सिंह मुगल दरबार मे गया था | कर्ण सिंह को जहांगीर ने 5000 का मनसबदार बनाया गया |
5. जहांगीर ने अमरसिंह तथा कर्ण सिंह की मूर्तियां आगरा के किले में लगवाई |
6. अमरसिंह इस संधि से निराश हुआ तथा नौ चौकी नामक स्थान पर जाकर रहने लगा | जहां बाद में राजसमन्द झील बनाई गई |

कर्णसिंह 1620-1628


❖ जगमंदिर महलो का निर्माण शुरू करवाया |
❖ खुर्रम विद्रोह के दौरान इन महलो में रुका |
❖ उदयपुर में कर्णविलास व दिलखुश महल बनवाया |

जगतसिंह प्रथम 1628-1652


❖ जरामन्दिर महलों का निर्माण पूर्ण करवाया |
❖ उदयपुर में जगदीश मंदिर (जगन्नाथ राय मंदिर ){वास्तुकार – अर्जुन भाणा मुकुंद } का निर्माण करवाया | इसे सपनों में बना मंदिर कहते है |
❖ जगन्नाथ राय प्रशस्ति के लेखक – कृष्ण भट्ट (हल्दी घाटी के युद्ध का वर्णन)
❖ उदयपुर में नॉजुबाई का मंदिर बनवाया |
❖ जगतसिंह दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था |

राज सिंह 1652-1680


❖ उपाधि – विजय कटकात
❖ इसके समय शाहजहां बीमार हुआ व इसके पुत्रो से उत्तराधिकार को लेकर युद्ध हुआ राजसिंह ने इसका फायदा उठाते हुए मेवाड़ में टिक दौड़ उत्सव की आड़ में मुगल ठिकानों को लूट लिया |
❖ आरंगजेब ने राजसिंह को मेवाड़ में सर्वाधिक 4000 मनसब दिया |
❖ ओरंगजेब व राजसिंह के बीच विवाद के कारण :-
1. पारुमती विवाद – किशनगढ़ के शासक मानसिंह ने अपने बहन पारुमती की संगाई ओरंगजेब से की | राजसिंह ने ओरंगजेब के विरुद्ध जाकर विवाह किया इस विवाह के बाद मेवाड़ मुगलों की सेना के मध्य केसरी की नाल युद्ध हुआ जिसमें मेवाड़ विजय रहा |युद्ध की महत्वपूर्ण घटना इस युद्ध मे राजसिंह के सेनापति रतनसिंह चुंडावत की रानी सहल कंवर (हांडी रानी ) ने निशानी के तौर पर अपना सिर काटकर रतनसिंह को दिया |
2. ओरंगजेब द्वारा 1669 में हिन्दू मंदिरों को तोड़ने का आदेश दे दिया राजसिंह इसके विरुद्ध कई हिन्दू मंदिरों का निर्माण किया जिसमें प्रमुख श्रीनाथ जी व द्वारकाधीश मंदिर है |
3. राजसिंह ने संधि का ऐलान करते हुए चितोड़ दुर्ग की मरमत करवायी |
4. 1679 में ओरंगजेब के द्वारा हिन्दुओ पर जजिया कर लगाया गया राजसिंह ने इसका विरोध किया |
5. राजसिंह ने ओरंगजेब के विरुद्ध जाकर जोधपुर के शासक अधितसिंह व दुर्गादास राठौड़ सेनापती को शरण दी |
6. राजसिंह ने ओरंगजेब के पूत अकबर का सहयोग किया |
❖ राजसिंह की मृत्यु 1680 में जहर देने के कारण कुम्भलगढ़ में हुई |
❖ राजसिंह ने 1662 में गोमती नदी के पानी को रोककर “राजसमंद झील ” का निर्माण करवाया |

महाराणा जयसिंह 1680-1698


❖ जयसिंह ने  ‘जयसमंद झील ‘ का निर्माण करवाया गया |
❖ जयसिंह के समय दूसरी मेवाड़ मुगल संधि हुई |

अमरसिंह II (1698-1710)


❖ अमरसिंह के हाथ 1707 का देवाड़ी समझौता किया गया | यह समझौता मारवाड़ के शासक अजीतसिंह व जयपुर के शासक सवाई जय सिंह II व अमरसिंह II के मध्य हुआ |
❖ इस समझौते के तहत अमरसिंह की पुत्री चंदकुव्री का विवाह सशर्त सवाई जयसिंह के साथ किया गया |

संग्राम सिंह II (1710-1734)

❖ संग्राम सिंह द्वितीय ने उदयपुर में सहलियो की बही का निर्माण करवाया ।
❖ संग्रामसिंह के द्वारा17 जुलाई 1734 में मिलवाड़ा के हहुरड़ा स्थान पर मराठो के विरुद्ध हुरड़ा सम्मेलन बुलाया गया परन्तु सम्मेलन से पहले संग्रामसिंह की मृत्यु हो गई।

जगत सिंह 1734 -1778


❖ इसने पिछोला झील जंग निवास महल का निर्माण करवाया ।
❖ मेवाड़ में प्रवेश कर लगाने वाले थे प्रथम महाराणा थे ।
❖ इन्ही के काल मे हुरड़ा सम्मेलन किया गया जिसकी अवस्था जगत द्वितीय ने की थी ।
❖ दरबारी साहित्यकार नेकराम/नेतराम ।
❖ जगत सिंह द्वितीय के काल मे ही दिल्ली मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीलो पर माड़ी शाह का आक्रमण हुआ ।

भीमसिंह :-

  • इनकी पुत्री कृष्णा कुमारी की पहले संगाई भीमसिंह भाई मानसिंह (मारवाड़) के परन्तु विवाह से पहले मृत्यु हो गई। कृष्णा कुमारी की दूसरी सगाई जगत सिंह द्वितीय(जयपुर ) के साथ हुई।
  • ❖ गिगोली / परवतसर का युद्घ :- 1. 1807 जगतसिंह द्वितीय (जयपुर) v/s मानसिंह (मारवाड़ )
  • 2. विवाद शांत नहीं होने पर दो व्यक्तियो (अजित सिंहचुंडावत ,अग्रिन खां पिंडारी )की साल पर कृष्णा कुमारी को जहर देकर मार दिया।
  • 3 . 13 जनवरी 1818 को भीमसिंह ने अंग्रेजों से संधि कर ली ।
  • 4. जो दृढ राखे धर्म को ,तिहि राखे करतार। (यह लाइन मेवाड़ के राज चीन्ह पर लिखी गई थी।

❖ स्वरूप सिंह :- 

  • 1857 की क्रांति के समय राजा

❖ फतेहसिंह :

  • बिजोलिया किसान आंदोलन के समय राजा ।

❖ महाराणा भोपाल सिंह :-

  • राज. के एकीकरण के समय राजा ।

यह भी पढ़ें :- गुर्जर प्रतिहार वंश

मेवाड़ का itihas PDF

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