राठौड़ वंश का इतिहास:- राठौड़ अथवा राठौड एक राजपूत कुल एवं गोत्र है जो उत्तर भारत में निवास करते हैं। इन्हें सूर्यवंशी राजपूत माना जाता है। वे पारम्परिक रूप से राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र मारवाड़ में शासन करते थे।
राजस्थान के सम्पूर्ण राठौड़ो के मूल पुरुष राव सीहा जी माने जाते है जिन्होंने पाली से राज प्रारम्भ किया उनकी छतरी पाली जिले के बिटु गाव में बनी हुई है राठौड़ राजपूतो द्वारा युधो में अद्वतिय शौर्य पराक्रम बताने के कारण उन्हें रणबंका राठौड़ भी कहा जाता है 1947 से पूर्व भारत में अकेले राठौड़ो की दस से ज्यादा रियासते थे और सैकड़ो ताजमी ठिकाने थे जिनमे मुख्य जोधपुर, मारवाड़, किशनगढ़, बीकानेर, ईडर, कुशलगढ़, सैलाना, झाबुआ, सीतामउ, रतलाम, मांडा, अलीराजपुर वही पूर्व रियासतो में मेड़ता ,मारोठ और गोड़वाड़ घाणेराव मुख्या थे |
राजस्थान में राठौड़ वंश का उदय
- राठौड़ों को संस्कृत में राष्ट्रकूट कहा जाता है, जिसका प्राकृत रूप रट्टउड है। अशोक के शिलालेखों में रिस्टिक, लटिक तथा रटिक शब्दों का प्रयोग किया गया है जो राष्ट्रकूट से मिलते जुलते हैं। ये राष्ट्रकूट अपने आपको आदर देने के लिये महाराष्ट्र या महाराष्ट्रिक कहने लगे जिसका प्राकृत रूप मराठी तथा मराठा हुआ। कुछ भाटों की मान्यता है कि राठौड़ हिरण्याकश्यप की संतान हैं। जोधपुर की ख्यात में इन्हें राजा विश्वुतमान के पुत्र राजा वृहदबल से पैदा होना लिखा है। इन्हें सूर्यवंशी तथा ब्राह्मणवंशी भी बताया जाता है। नैणसी इन्हें कन्नौज के शासक जयचंद्र की संतान मानता है।
- राष्ट्रौढ़ वंश महाकाव्य में इन्हें भगवान शिव के शीश पर स्थित चंद्रमा से उत्पन्न होना बताया गया है। राठौड़ों की विभिन्न शाखाओं में दक्षिण के राष्ट्रकूट बड़े प्रसिद्ध हैं। राजस्थान के राठौड़ों में हस्तिकुण्डी, धनोप, वागड़, जोधपुर तथा बीकानेर के राठौड़ बड़े प्रसिद्ध हैं। मारवाड़ के राठौड़ अपने आप को अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश के राजा मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के पुत्र कुश की संतान मानते हैं।
- मारवाड़ के राठौड़ कन्नौज या बदायूं से आये थे जहाँ इन्होंने दो शताब्दियों तक राज्य किया था। पहले ये दक्षिण में राज्य करते थे। वहाँ से इन्होंने प्रतिहारों पर आक्रमण कर उनसे कन्नौज छीना। ईस्वी 1170 में कन्नौज की गद्दी पर जयचंद्र गहरवार बैठा जिसका झगड़ा पृथ्वीराज चौहान से हुआ। जयचंद ने मुहम्मद गौरी को भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण भेजा ताकि वह पृथ्वीराज चौहान से अपनी पराजय का बदला ले सके। तराइन के दूसरे युद्ध ई. 1192 में गौरी ने पृथ्वीराज को मार डाला। ई. 1194 में गौरी ने जयचंद्र पर आक्रमण कर उसे भी मार डाला।
- जयचंद्र का पुत्र हरिश्चंद्र 18 वर्ष का आयु में कन्नौज की गद्दी पर बैठा। ई. 1226 में अल्तुतमिश ने कन्नौज पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया। हरिश्चंद्र फर्रूखाबाद जिले के महुई गाँव में आ गया। हरिश्चंद्र का कनिष्ठ पुत्र सेतराम था जिसका पुत्र सीहा हुआ। सीहा ने महुई में काली नदी के तट पर एक दुर्ग बनवाया किंतु जब फर्रूखाबाद पर भी मुसलमानों का अधिकार हो गया तो सीहा ने उस स्थान को छोड़कर द्वारिका के लिये प्रस्थान किया। मार्ग में जब वह पुष्कर में ठहरा हुआ था तब वहाँ पर तीर्थयात्रा को आये हुए भीनमाल के ब्राह्मणों से उसकी भेंट हुई। उन दिनों मुल्तान के मुसलमान भीनमाल पर चढ़ाई कर लूट खसोट किया करते थे। ब्राह्मणों ने सीहा से सहायता मांगी। सीहा ने ब्राह्मणों की प्रार्थना स्वीकार कर भीनमाल पर आक्रमण कर मुसलमानों को भगा दिया। इस विषय में मारवाड़ में एक दोहा कहा जाता है-
भीनमाल लीधी भिड़े सीहै सेल बजाय,
दत दीन्हो सत संग्रह्यौ, ओ जस कदै न जाय।।
- अर्थात् सीहा ने तलवार के जोर पर भीनमाल पर अधिकार कर उसे ब्राह्मणों को दान में देकर जो पुण्य अर्जित किया, उसका यश सदा अमर रहेगा।
- पल्लीवाल ब्राह्मणों की प्रार्थना पर सीहा ने पाली पर अधिकार कर मीणा, भील, मेर आदि लुटेरों से उनकी रक्षा की तथा वहीं बस गया। धीरे-धीरे आसपास के गाँवों पर उसका अधिकार हो गया। पाली तब सोनगरा चौहानों के राज्य में था। वि. सं.1330 में लूनी नदी के किनारे खेड़ में सिंध के मुसलमान लुटेरों से लड़ते हुए राव सीहा वीरगति को प्राप्त हुआ। सीहा के साथ उसकी रानी पार्वती देवी सती हुई। उसके तीन पुत्र आसथान, सोनंग तथा अज थे। जीवनपर्यंत ब्राह्मणों की रक्षा करने और उसी काम में अपना जीवन होम कर देने के कारण सीहा को ब्राह्मणों का आशीर्वाद फला और उसके वंशजों ने मारवाड़ में प्रबल प्रतापी राज्य की स्थापना की।
- चौदहवीं शताब्दी में सीहा का वंशज मल्लीनाथ वर्तमान बाड़मेर जिले के पूर्वी छोर का राजा हुआ जिसे मल्लीनाथ के नाम पर मालानी प्रदेश कहते हैं। मल्लीनाथ के वंशज मालानी राठौड़ कहलाये।
जोधपुर के राठौड़
- मालानी के राठौड़ राजा मल्लीनाथ का छोटा भाई वीरम था जो महेवा में गुढ़ा (छोटा गढ़) बांध कर रहता था। मल्लीनाथ के पुत्रों और वीरम के बीच झगड़ा रहता था। इस कारण वीरम महेवा छोड़कर पहले तो जैसलमेर पहुँचा। फिर वहाँ से चलकर नागौर आया और नगौर के खान शासक को परास्त करके नागौर को लूटता हुआ जांगलू (बीकानेर जिले में) चला गया। उसने लाडनूं के मोहिलों को परास्त किया तथा ई. 1383 में जोहियों के विरुद्ध लड़ता हुआ मारा गया। वीरम का पुत्र चामुण्डराय, राव चूण्डा के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
- ई.1444 में प्रतिहारों की इंदा शाखा के मुखिया ने चूण्डा से अपनी बेटी का विवाह किया तथा मण्डोर का किला मुसलमानों से छीनकर चूण्डा को दहेज में दे दिया। चूण्डा का ज्येष्ठ पुत्र रणमल मण्डोर का शासक हुआ।
- रणमल के पुत्र राव जोधा ने ई.1459 में जोधपुर दुर्ग की नींव रखी। इसके बाद देश की स्वतंत्रता तक यही वंश जोधपुर राज्य पर शासन करता रहा। इस वंश में जसवंतसिंह (प्रथम) बड़ा प्रतापी राजा हुआ। उससे औरंगजेब भी भय खाता था। स्थापत्य कला में उत्कृष्ट रुचि का प्रदर्शन करने के कारण जसवंतसिंह (प्रथम) को हिन्दुषत् भी कहा जाता है। उसकी मृत्यु के बाद औरंगजेब ने ई.1678 में मारवाड़ खालसा कर लिया किंतु वीर दुर्गादास राठौड़ तथा उनके साथियों ने पहले ई.1707 में तथा फिर ई.1708 में मुगलों को जोधपुर से मार भगाया। जोधपुर पर फिर से जसवंतसिंह के वंश का शासन हो गया।
बीकानेर के राठौड़
- जोधपुर नरेश राव जोधा के 17 पुत्र तथा 7 पुत्रियां थीं। जोधा के पुत्रों में बीका का स्थान दूसरा था। राव जोधा के कहने पर राव बीका जांगल देश की ओर चला गया और 23 वर्ष के अथक परिश्रम से उसने जांगल क्षेत्र में अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया। राव जोधा की मृत्यु के बाद जोधा का तीसरा पुत्र सातल जोधपुर का राजा हुआ। सातल के मरने पर जोधा का अन्य पुत्र सूजा जोधपुर की गद्दी पर बैठा। इस बीच बीका ने जोधपुर की गद्दी पर अपना अधिकार जताते हुए जोधपुर राज्य पर आक्रमण कर दिया। बीका ने सूजा को परास्त करके जोधपुर राज्य के सारे राजकीय चिह्न छीन लिये किंतु राजमाता के समझाने पर बीका फिर से बीकानेर चला गया। तब से लेकर भारत के स्वतंत्र होने तक बीका के वंशज बीकानेर पर शासन करते रहे। राठौड़ों की इस शाखा में कर्णसिंह प्रतापी राजा हुआ। औरंगजेब ने उसे राज्यच्युत करके औरंगाबाद भेज दिया जहाँ उसकी मृत्यु हुई। नागौर के राव अमरसिंह राठौड़ से इसी कर्णसिंह की बहुचर्चित लड़ाई हुई थी जिसे ‘मतीरे की राड़’ भी कहते हैं। इस युद्ध की परिणति अमरसिंह राठौड़ की मृत्यु में हुई।
मेड़तिया राठौड़
- वीरमदेव की मृत्यु के बाद जयमल मेड़ता का स्वामी हुआ। इसी बीच शेरशाह सूरी का सितारा डूब गया जिससे अवसर पाकर मालदेव ने मेड़ता का राज्य फिर से नष्ट कर दिया तथा वीरमदेव का महल तुड़वा कर वहाँ मूलियों की खेती करवा दी। जयमल उदयपुर के महाराणा उदयसिंह की सेवा में चला गया। जब अकबर ने ई.1567 में चित्तौड़ पर आक्रमण किया तब यही जयमल चित्तौड़ दुर्ग का अध्यक्ष था। अकबर की गोली से जयमल लंगड़ा हो गया। तब जयमल ने कल्ला राठौड़ के कंधों पर बैठकर युद्ध लड़ा और वीरगति को प्राप्त हुआ। जयमल के बहनोई सिसोदिया फत्ता ने भी इस युद्ध में प्रचण्ड शौर्य का प्रदर्शन किया और रणखेत रहा। अकबर ने आगरा के दुर्ग में प्रवेश द्वार पर जयमल और फत्ता की मूर्तियां लगवाईं। ई.1663 में जब वर्नियर भारत आया तब उसने इन मूर्तियों को देखकर अपना जीवन धन्य माना।
- जयमल की मृत्यु के बाद अकबर ने जयमल के पुत्रों सुरताण एवं केशवदास को आधे-आधे मेड़ता का स्वामी बना दिया। ई.1602 में अकबर ने मेड़ता का परगना जोधपुर नरेश सूरसिंह को दे दिया। इसी के साथ मेड़ता राज्य समाप्त हो गया। मेड़ता की छोटी-छोटी जागीरों पर राव दूदा के वंशज बने रहे।
राठौड़ वंश का इतिहास (मारवाड़ का राठौड़ वंश)
डॉ गोपीनाथ शर्मा के अनुसार राठौड़ शब्द राष्ट्रकोट से बना है। राष्ट्रकोट दक्षिण भारत का एक राजवंश था। कर्नल जेम्स टांड ने राठौड़ो की वंशावली के आधार पैर इन्हें सूर्यवंशी बताया था।
कर्नल जेम्स टांड के अनुसार राठौड़ो को दयालदास ने सूर्यवंशी बताया था। मुहणोत नैणसी ने जयचंद गहडवाल का वंशज बताया है।
राठौड़ राजवंश के संस्थापक
राव सीहा (1240 – 1273 ई.) –
- राव सिंहा कन्नोज के राजा जयचंद गहडवाल के पौत्र थे। जयचंद गहडवाल की पुत्री संयोगिता का विवाह पृथ्वीराज III के साथ हुआ था।
- राजा जयचंद गहडवाल के समय 1194 को कन्नोज पर मुहम्मद ग़ौरी ने आक्रमण कर दिया था। यह चन्दावर का युद्ध हुआ था। इस समय राव सिंहा बदायू के सूबेदार थे।
- इस युद्ध के पश्चात 1212 में राव सिंहा बदायू से मारवाड़ (पाली) चले गये थे। राव सिंहा ने अपना केंद्र खेड़ नाम स्थान को बनाया था।
- राव सिंहा का विवाह सोलंकी सरदार की पुत्री पार्वती सोलंकी के साथ हुआ था।
- राव सिंहा की मृत्यु बीठू गाँव (पाली) में गायों की रक्षा करते हुए होती है।
- राव सिंहा ने 1273 में राठौड़ वंश की नीव रखी थी। राठौड़ो के आदि पुरुष / मूल पुरुष राव सिंहा है।
- राठौड़ राजवंश के संस्थापक राव सिंहा थे। राठौड़ राजवंश बीकानेर से बाड़मेर व बाड़मेर से किशनगढ़ तक फैला हुआ था।
मारवाड़ के राठौड़ वंश के प्रमुख शासक –
राव आसनाथ –
- राव आसनाथ की अलाउद्दीन खिलजी के साथ हुए युद्ध में हार हुई थी।
- राव आसनाथ ने गुन्दोज नामक स्थान को अपना केंद्र बनाया था।
राव धुहड़ –
- राव धुहड़ कर्नाटक गये थे तथा वहाँ से नागणेची माता की कास्ट प्रतिमा लाकर नगाड़ा गाँव में स्थापित करवाई थी।
Note – कनाणा गाँव (बाड़मेर) का गैर नृत्य प्रसिद्ध है।
राव चुंडा (1383 – 1423 ई.) –
- 1395 में राव चूडा ने मण्डोर को अपनी राजधानी बनाया था। मण्डोर का प्राचीन नाम मांडव्यपुर था। मांडव्यपुरकी स्थापना 6 वी शताब्दी में हरीश चन्द्र द्वारा की गयी थी। हरीश चन्द्र गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के शासक थे।
- राव चूडा को राठौड़ वंश का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है।
- राव चूडा ने सामंत प्रथा की शुरुवात की थी।
- मण्डोर में रावण का मंदिर है। रावण की पत्नी मंदोदरी यही की रहने वाली थी। रावण की ईष्ट देवी खरारना देवी है।
- मण्डोर में 33 करोड़ देवी – देवताओं की साल है।
- राव चूडा ने इन्दाशाखा के राजा उगम सिंह की पुत्री किशोरी देवी के साथ विवाह किया था। राव चूडा को मण्डोर दहेज़ में मिला था।
- राव चूडा की तुलना शिवाजी से की जाती है।
- राव चूडा वीरमदेव के पुत्र थे।
- राव चूडा ने अपनी पत्नी किशोरी देवी के कहने पर कान्हा को उत्तराधिकारी बना दिया था। कान्हा को उत्तराधिकारी नियुक्त किये जाने से रणमल नाराज होकर मेवाड़ चले जाते है।
राव रणमल (1427 – 1438) –
- राव रणमल ने अपना अधिकांश समय मेवाड़ में बिताया था।
- राव रणमल की पत्नी कोडम दे थी। कोडम दे ने कोडमदेसर बावड़ी बनवाई थी।
- मेवाड़ के शासक राणा लाखा थे। राणा लाखा के पुत्र कुंवर चुंडा थे।
- राव रणमल ने अपनी बहन हंसाबाई के विवाह का प्रताव कुंवर चुंडा के लिए भेजा था परन्तु दूत की गलतफ़हमी के चलते दूत ने प्रताव राणा लाखा को बोल दिया। राणा लाखा ने इस विवाह के लिए मना कर दिया था।
- राव रणमल फिर स्वंय राणा लाखा के पास गये और बोले मैं अपनी बहन का विवाह आपसे करा दूंगा परन्तु आपसे और मेरी बहन से उत्पन्न संतान ही मेवाड़ का अगला उत्तराधिकारी बने।
- राजपूतों में बेटी के विवाह के अवसर पर जो अन्य कुछ स्त्रियाँ भेजी जाती थी उन्हें दासी कहा जाता था। इस प्रथा को डाबरिया प्रथा कहा जाता था।
- कुंवर चुंडा विवाह करने से मना कर देते है। कुंवर चुंडा को मेवाड़ का भीष्म पितामह कहा जाता है।
- हंसा बाई और राणा लाखा से उत्पन्न संतान का नाम राणा मोकल था।
- राणा लाखा ने राव रणमल को मेवाड़ में धणला नामक जागीर दी थी।
- राव रणमल को मारवाड़ में जोजावर की जागीर दी गयी थी।
- राव रणमल मेवाड़ी सरदार राघव देव की हत्या करवा देते है।
- राणा मोकल के पुत्र का नाम कुम्भा था। कुम्भा ने हंसाबाई की दासी भारमली की सहायता से 1438 में चित्तौड़ दुर्ग में राव रणमल की हत्या करवा दी थी।
राव जोधा (1438 – 1489) –
- कुम्भा के द्वारा हुए आक्रमण के कारण राव जोधा भाग कर काहुनी गाँव चले जाते है।
- राव जोधा काहुनी गाँव में लोकदेवता हड़बूजी से आशीर्वाद लेते है। हड़बूजी शकुन शास्त्र के ज्ञाता थे। हड़बूजी को वचन सिद्ध पुरुष , राम देव जी के मौसेरे भाई कहा जाता है। हड़बूजी का वाहन शियार है।
- हड़बूजी का जन्म बुन्देल (नागौर) में हुआ था। हड़बूजी का मंदिर जोधपुर के बेंगटी गांव में बना हुआ है। हड़बूजी के मंदिर में बैल गाड़ी की पूजा होती है। मंदिर का निर्माण जोधपुर के शासक अजीत सिंह ने करवाया था।
- राव जोधा को अपना साम्राज्य वापिस मिलने के पश्चात राव जोधा ने तलवार ग्रहण की तथा हड़बूजी को बेंगटी गांव सौपा था।
- राव जोधा ने अक्का सिसोदिया व अहाडा के सहयोग ने मण्डोर पुनः प्राप्त किया था।
- 1453 में राव जोधा व महाराणा कुम्भा के मध्य आवल – बावल की संधि हुई थी। आवल – बावल की संधि का प्रमुख केंद्र बिंदु सोजत (पाली) था।
- आवल – बावल संधि के तहत राव जोधा ने अपनी पुत्री श्रृंगारीदेवी का विवाह महाराणा कुम्भा पुत्र रायमल के साथ किया था। श्रृंगारी देवी ने घोसुण्डी बावड़ी बनायी थी।
- राजस्थान में सर्वप्रथम वैष्णव धर्म की जानकारी घोसुण्डी बावड़ी से ही मिलती है।
- 12 मई 1459 को राव जोधा ने जोधपुर शहर बसाया था तथा जोधपुर को अपनी राजधानी बनाया था। (जोधपुर को नीला शहर , सूर्य नगरी , ससांस्कृतिक विरासत का शहर, मारवाड़ की राजधानी या मरुस्थल का प्रवेश द्वार, जोधाणा, सनसिटी कहा जाता है।)
- 1459 में राव जोधा ने मेहरानगढ दुर्ग बनाया था। मेहरानगढ़ दुर्ग चिड़ियाटूक पहाड़ी पर स्थित है।
- मेहरानगढ दुर्ग को गढ़ चिंतामणी , कागमुखी , सूर्यमुखी , मोर ध्वज, मयूर ध्वज कहा जाता है। मेहरानगढ दुर्ग मोर पंख की आकृति का है।
- मेहरानगढ दुर्ग के भीतर नागणेची माता व चामुंडा माता का मंदिर स्थित है।
- मेहरानगढ दुर्ग की नीव रिद्धि बाई (करणी माता) ने रखी थी। मेहरानगढ दुर्ग बनाते हुए राजाराम मेघवाल / रजिया जिन्दा चुनवा दिया गया था।
- रुडयाड किपलिंग ने कहा है कि यह मेहरानगढ दुर्ग देवताओं व अपसराओं द्वारा निर्मित है।
- कैनेडी ने मेहरानगढ दुर्ग को विश्व का आठंवा अजूबा कहा है।
- राव जोधा ने सामंत प्रथा व नौकरशाही प्रथा को प्रमुखता से जोधपुर राज्य के अंदर चलाने का काम किया था।
- राव जोधा की पत्नी जसमा दे ने रानीसर तालाब बनवाया था।
- राव जोधा का राजतिलक इनके भाई अखेराज ने किया था। अखेराज ने अपना अंगूठा काटा और राव जोधा का राजतिलक किया था।
- अखेराज के पास बागड़ी की जागीर थी। अखेराज की मृत्यु के बाद बागड़ी के राजपूत सरदार जोधपुर शासकों का राजतिलक करते थे।
- यह प्रथा महाराजा सरदार की मृत्यु के पश्चात समाप्त हो गयी थी।
राव सातल देव (1489 – 1492) –
- राव सात्तल देव ने जैसलमेर में सात्तलमेर बसाया था।
- राव सात्तल देव के समय अजमेर के हाकिम मल्लू खां का सेनापति घुड़ले खां पीपाड़ में 140 अविविहित कन्यायों का अपहरण करता है, तो राव सात्तल देव युद्ध कारते हुए कोसाणा गाँव में वीरगति को प्राप्त होते है।
- राव सात्तल देव ने घुड़ले खां को मार कर इन 140 कन्यायों को छुड़ाया था।
- घुड़ले खां की पुत्री गिन्दोली ने मारवाड़ में घुड़़ला नृत्य की शुरुवात की थी।
- घुड़़ला नृत्य चेत्र कृष्ण अष्टमी को अर्ध छिद्रित मटके में दीपक जला कर किया जाता है।
- राव सात्तल देव की पत्नी फुला भटियानी थी। फुला भटियानी ने फुलेलाव तालाब बनाया था।
- सात्तलमेर पोखरण की राजधानी थी।
राव गांगा (1515 – 1531) –
- राव गांगा ने ईडर के उत्तराधिकारी युद्ध में रायमल का साथ दिया था।
- राव गांगा ने सांगा की सहायता हेतु 4000 सैनिक भेजे थे जिनका नेतृत्व इनके पुत्र मालदेव ने किया था।
- 1529 – 30 में राव गांगा के शासन काल में सेवकी का युद्ध हुआ था। सेवकी का युद्ध राव गांगा और दौलत खां (नागौर के) के मध्य हुआ था
- सेवकी के युद्ध में राव गांगा की ओर से राव जैतसी ने साथ दिया था।
- दौलत खां की तरफ से शेखा ने भी युद्ध में भाग लिया था। शेखा ने ही शेखवाटी बसाया था।
- सेवकी के युद्ध में राव गांगा की विजय होती है।
राव मालदेव (1532 – 1562) –
- राव गांगा की हत्या इन्ही के पुत्र राव मालदेव ने की थी। राव मालदेव को मेवाड़ का प्रथम पितृहन्ता कहा जाता है।
- राव मालदेव का राज्याभिषेक 5 जून 1531 को होता है परन्तु इनका काल 1532 से माना जाता है। राव मालदेव का राज्याभिषेक सोजत (पाली) में हुआ था।
- राव मालदेव की माता माणिक देवी थी। माणिक देवी सिरोही के शासक जगमाल देवड़ा की पुत्री थी।
- राव मालदेव को उदय सिंह ने बसन्तराय हाथी दिया था।
- डॉ ओझा ने राव मालदेव को महत्वाकांक्षी शासक कहा था।
- फ़ारसी इतिहासकारों ने राव मालदेव को हस्मथ वाला राजा कहा है।
- बंदायूनी ने भारत का महान पुरुषार्थी राजकुमार कहा है।
- फ़रिश्ता ने राव मालदेव को भारत का शक्तिशाली शासक बताया है।
- राव मालदेव को 52 युद्धों का विजेता व चारण इतिहासकारों ने राव मालदेव हिन्दू बादशाह भी कहा है।
- राव मालदेव के पास 58 परगने थे।
- राव मालदेव का विवाह राव लूणकरण की पुत्री उमा दे के साथ हुआ था।
- उमा दे को रूठी रानी के नाम से भी जाना जाता है। उमा दे आजीवन रूठ कर तारागढ़ (अजमेर) दुर्ग में रही थी।
- राव मालदेव ने खानवा युद्ध का नेतृत्व किया था।
- मारवाड़ में अधिकांश किले राव मालदेव ने ही बनवाए है।
- राव मालदेव ने भाटी शासकों से फलौदी छिना था।
- राव मालदेव ने सिवाणा के राठौड़ शासक डूंगर सिंह को पराजित किया था।
- राव मालदेव ने सांचोर के चौहानों को हराया था।
- राव मालदेव ने मेड़ता के वीरमदेव को हराया था।
- मारवाड़ चित्रकला का उद्भव राव मालदेव के समय हुआ था। मारवाड़ चित्रकला में पिला रंग व आम के वृक्षों का चित्रांकन किया गया है।
- राव मालदेव के समय दिल्ली में हुमायूँ , गुजरात में बहादुर शाह व बिहार में शेरशाह सूरी (फरीद) था।
- 1541 में पाहेवा/साहवा का युद्ध फलौसी (जोधपुर) में हुआ था। इस युद्ध में राव मालदेव ने अपने सेनापति जेता व कुम्पा को बीकानेर के राव जैतसी से युद्ध को भेजा था।
- इस युद्ध में जैतसी की हत्या हो जाती है, जिसके बाद जैतसी का पुत्र कल्याणमल दिल्ली शेरशाह सूरी के पास सहायता के लिए जाता है।
- कल्याणमल ने सबसे पहले नागराज को शेरशाह उरी के पास भेजा था।
- यह युद्ध जितने के बाद राव मालदेव कुम्पा को डीडवाना व झुंझुनू की जागीर दी जाती है।
- 5 जनवरी 1544 को गिरी सुमेल/जैतारण का युद्ध पाली में हुआ था।
- इस युद्ध राव मालदेव के दोनों सेनापति जेता व कुम्पा तथा शेरशाह सूरी के मध्य हुआ था।
- इस युद्ध में शेरशाह सूरी का सेनापति जलाल खां था। इस युद्ध में कल्याणमल ,मेड़ता के वीरमदेव ने शेरशाह का साथ दिया था।
- इस युद्ध में शेरशाह सूरी विजयी रहता है। इस युद्ध में राव मालदेव के दोनों सेनापति जेता व कुम्पा की मृत्यु हो जाती है।
- राव मालदेव भागकर सिवाणा दुर्ग (बाड़मेर) में चले जाते है। इस दुर्ग को मारवाड़ शासकों की शरण स्थली कहा जाता है।
- इस युद्ध के बाद शेरशाह सूरी ने कहा था “मैं मुठ्ठी भर बाजरे के लिए हिन्दुस्तान की बादशाहत गवा देता”। शेरशाह सूरी ने कहा था अगर मेरे पस जेता और कुम्पा जैसे सेनानायक होते तो ये हिदुस्तान ही नहीं ये विश्व मेरा होता।
- शेरशाह सूरी इस युद्ध में रायसीन अभियान के बाद 80,000 सैनिकों के साथ आता है।
- ख्वास खां व ईसा खां को शेरशाह सूरी ने जोधपुर आक्रमण के लिए भेजा था।
- राव मालदेव को दो पुत्रियाँ थी। इनके एक पुत्री लाल बाई का विवाह इस्लाम शाह के हुआ था व कनक बाई का विवाह सुलतान महमूद के साथ हुआ था।
- नागौर के दौलत खां से राव मालदेव ने दरियाजोश हाथी को लेकर युद्ध किया था।
- 1557 में हरमाड़ा का युद्ध मालदेव एवं अजमेर के पठान सेना नायक हाजी खाँ के मध्य हुआ था।
राव चंद्रसेन (1562 – 1581) –
- राव चंद्रसेन को मारवाड़ का प्रताप , प्रताप का अग्रगामी , भुला बिसरा राजा , विस्मृत वाला राजा , प्रताप का पथ प्रदर्शक , द फॉरगेटन हीरों ऑफ मारवाड़ , राजपूत शासकों का आदर्श कहा जाता है।
- राव चंद्रसेन छापामार युद्ध पद्धति अपनाने वाले दुसरे शासक थे। (पहले शासक उदय सिंह थे।)
- राव चंद्रसेन की माता का नाम स्वरूप दे था।
- राव चंद्रसेन का जन्म जुलाई 1541 में हुआ था।
- 3 नवम्बर 1570 को अहिच्छत्रपुर दुर्ग (नागौर) में शुक्र ताबल किनारे भारमल के कहने पर नागौर दरबार लगा था। (नागौर दरबार का मतलब राजस्थान के अधिकांश राजाओं ने मुगलों की अधीनता स्वीकार की थी।)
- अकबर ने सुलुहकुल की नीति अपनायी थी।
- राव चंद्रसेन के दो भाई रामसिंह व उदय सिंह भी इस नागौर दरबार में आते है। राव चंद्रसेन ने राम सिंह को नाडोल के युद्ध में पराजित किया था व उदय सिंह को लोहावट के युद्ध में पराजित किया था।
- युद्ध में पराजित होने के बाद राम सिंह व उदय सिंह ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी।
- नागौर दरबार में बीकानेर से कल्याणमल भी आये थे। कल्याणमल के दो पुत्र थे, पृथ्वी राठौड़ (पीथल) व रायसिंह राठौड़। अकबर ने पृथ्वी राठौड़ (पीथल) को गागरोण दुर्ग सौपा था।
- पृथ्वी राठौड़ (पीथल) ने गागरोण दुर्ग में ही वेलि क्रिसन रुकमणी री लिखा था। वेलि क्रिसन रुकमणी री को उत्तरी मारवाड़ का प्रमुख ग्रन्थ कहा जाता है।
- नागौर दरबार में जैसलमेर से हरराय भी आते है।
- इस दरबार में चन्द्र सेन भी आये थे परन्तु राव चन्द्रसेन को यथोचित सम्मान नहीं मिला तो राव चन्द्र सेन वापिस जोधपुर चले गये थे।
- राव चंद्रसेन के अकबर की अधीनता स्वीकार न करने पर अकबर क्रोधित हो जाता है तथा अपने एक व्यक्ति हुसैन कुली खां को भेजता है तथा उसरी बार रायसिंह राठौड़ को भेजता है।
- रायसिंह राठौड़ को 1572 में अकबर द्वारा जोधपुर का प्रशासक नियुक्त किया गया था।
- अकबर ने जोधपुर की भूमि को खालसा (राजकीय नियंत्रण वाली भूमि) घोषित किया गया था। (जोधपुर की भूमि को दो बार खालसा घोषित किया गया था एक बार अकबर द्वारा व दूसरी बार औरंगज़ेब द्वारा किया गया था।)
- रायसिंह राठौड़ के जोधपुर पहुँचने के बाद राव चन्द्रसेन सिवाणा चले गये थे। सिवाणा में राव चंद्रसेन ने चार वर्षों तक मुगलों का विरोध किया था।
- इसके पश्चात राव चंद्रसेन सिवाणा से भाद्राजूण चले गये थे।
- पोकरण का किला हरराय भाटी के पास गिरवी रख राव चंद्रसेन सारण की पहाड़ियों (छतरी) में चले गये थे। सारण की पहाड़ियों के पश्चात राव चंद्रसेन कांगूजा की पहाड़ियां चले गये थे।
- कांगूजा से सचियाप जाने के बाद 11 जनवरी 1581 को राव चंद्रसेन को बैरसल द्वारा जहर देकर हत्या कर दी थी।
Note – 1581 – 1583 तक यह क्षेत्र खालसा घोषित रहा था।
मोटा राजा उदय सिंह –
- उदय सिंह को अकबर द्वारा मोटा राजा की उपाधि दी गयी थी।
- मुगलों के आने से मारवाड़ चित्रकला पर मुग़लशैली का प्रभाव मिलता है।
- मोटा राजा उदय सिंह प्रथम मारवाड़ के राजा थे जिन्होंने मुगलों के साथ विवाहिक संबंध स्थापित किये थे।
- मोटा राजा उदय सिंह ने अपनी पुत्री जगतगुसाई (जोधा बाई) का विवाह जहांगीर से किया था। जहांगीर प्रथम मुग़ल शासक था जिसकी माता (हरखा बाई) राजपूत रानी थी।
- जगतगुसाई (जोधा बाई) व जहांगीर से उत्पन्न संतान शाहजहाँ (खुर्रम) थी।
- मोटा राजा उदय सिंह ने मल्लीनाथ मेले को प्रारंभ किया था। यह मेला चेत्र माह में तिलवाड़ा (बाड़मेर) में लूनी नदी के किनारे लगता है।
- मोटा राजा उदय सिंह की मृत्यु लाहौर में हुई थी।
Note – रावी नदी का प्राचीन नाम पुरुषणी नदी था।
सूर सिंह –
- सूर सिंह का राज्याभिषेक लाहौर में हुआ था।
- सूर सिंह को अकबर द्वारा सवाई की उपाधि दी गयी थी।
- सूर सिंह ने जोधपुर में मोती महल का निर्माण करवाया था।
- सूर सिंह की मृत्यु बुरहानपुर (दक्षिण भारत) में हुई थी।
गज सिंह –
- गज सिंह का राज्याभिषेक बुरहानपुर में हुआ था।
- गज सिंह ने घोड़ा दागने से मुक्त किया था।
- जहांगीर ने गज सिंह को दालथम्बन की उपाधि प्रदान की थी।
- गज सिंह के पुत्र अमर सिंह तथा जसवंत सिंह थे।
- गज सिंह ने पासवान अनारा बेगम के कहने पर जसवंत सिंह को उत्ताराधिकारी घोषित किया था।
अमर सिंह –
- जसवंत सिंह को उत्ताराधिकारी घोषित करने के पश्चात अमर सिंह शाहजहाँ के पास चले जाते है। अमर सिंह को कटार का धनी कहा जाता है।
- अमर सिंह की गाथाएं ख्यालों में प्रसिद्ध है। अमर सिंह के घोड़े के नाम बादल था।
- अमर सिंह की छतरी नागौर में है।
- 1644 में अमर सिंह तथा बीकानेर के कर्णसिंह के मध्य ‘मतीरे की राड़’ युद्ध हुआ था।
- अमर सिंह ने शाहजहाँ के साले सलावत खां की हत्या कर दी थी।
जसवंत सिंह (1638 – 1678) –
- जसवंत सिंह का राज्याभिषेक पहले आगरा तथा बाद में जोधपुर में हुआ था।
- जसवंत सिंह को महाराजा की उपाधि शाहजहाँ द्वारा दी गयी थी।
- जसवंत सिंह का विवाह बूंदी के शासक शत्रुसाल की पुत्री जसवंत दे हाड़ी रानी से हुआ था।
- जसवंत सिंह के मंत्री महेश दास थे।
- जसवंत सिंह के घोड़े का नाम महबूब था।
- जसवंत सिंह के दरबारी कवी मुहणोत नैणसी थे।
- मुहणोत नैणसी ओसवाल जैन समुदाय से थे। ओसवालों की कुल देवी सच्चिया माता है। सच्चिया माता का मंदिर ओसिया में है। ओसिय का प्राचीन नाम उपकेश पट्टन था। ओसिय को राजस्थान का भुवनेश्वर कहा जाता है।
- मुहणोत नैणसी ने नैणसी री ख्यात व मारवाड़ रे परगना री विगत (राजस्थान का गजेटियर) ग्रन्थ लिखे है।
- नैणसी री ख्यात में “हैं” शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है।
- मारवाड़ रे परगना री विगत ग्रन्थ मारवाड़ी भाषा में लिखा गया है।
- मुहणोत नैणसी की हत्या जसवंत सिंह के पुत्र अजीत सिंह ने करवाई थी।
- मुंशी देवी प्रसाद ने मुहणोत नैणसी को राजपूताने का अबुल फ़जल कहा है। (अबुल फ़जल अकबर के नौ रत्नों में से थे। (अकबर के पुत्र जहांगीर व ओरछा के सरदार वीरसिंह बुंदेला ने अबुल फ़जल की हत्या कर दी थी।)
- जसवंत सिंह के सेवक आसकरण राठौड़ थे। आसकरण राठौड़ का पुत्र वीर दुर्गादास राठौड़ थे।
- वीर दुर्गादास राठौड़ के पिता आसकरण थे व माता नेतकवर थी।
- वीर दुर्गादास राठौड़ का जन्म सालवा गाँव में हुआ था।
- वीर दुर्गादास राठौड़ को मारवाड़ का उदारक, मारवाड़ का अण बिंदिया मोती, मारवाड़ का गैरीबाल्डी कहा जाता है।
- वीर दुर्गादास राठौड़ को को कर्नल जेम्स टॉड ने राठौड़ो का यूलिसेस कहा है।
- वीर दुर्गादास राठौड़ की छतरी उज्जैन (मध्य प्रदेश) में है।
- जसवंत सिंह को सर्वप्रथम मालवा का सुबेदार बनाया गया था।
- शाहजहाँ अपने पुत्र दारा शिकोब को राजा बनाना चाहता था परन्तु औरंगज़ेब शासक बनाना चाहता था।
- 15 अप्रैल, 1658 को धरमत का युद्ध शिप्रा नदी किनारे उज्जैन (मध्य प्रदेश) में हुआ था। इस युद्ध में दारा शिकोह के साथ जसवंत सिंह व कासिम खां था।
- कासिम खां ने दारा शिकोह को धोखा दे औरंगज़ेब के साथ चला गया था।
- इस युद्ध को तलवारों व बारूदों का युद्ध भी कहा जाता है।
- इस युद्ध में औरंगज़ेब विजियी हुआ था। इस युद्ध के बाद धरमत का नाम बदलकर फतेहाबाद कर दिया था।
- धरमत का युद्ध हार जाने के बाद जसवंत की पत्नी जसवंत दे हाड़ी रानी दरवाजे नहीं खोलती है, वह कहती है या तो मेरा पति युद्ध में विजयी होके आयेंगे या फिर वीरगति को प्राप्त हुंगे।
- 14 मार्च 1659 को औरंगजेब व दारा शिकोह के मध्य दौराई का युद्ध अजमेर हुआ था। इस युद्ध में भी जसवंत सिंह दारा शिकोह की सहायता करते है।
- इस युद्ध में भी दारा शिकोह पराजित हो जाता है।
- दारा शिकोह तारागढ़ दुर्ग (अजमेर) में छिपा हुआ था।
- औरंगज़ेब ने दारा शिकोह को कंकवाड़ी दुर्ग (अलवर ) में कैद किया था।
- जसवंत सिंह ने जोधपुर में अनार के बाग़ लगाये थे। अनार के वृक्ष काबुल से लाये गये थे।
- जसवंत सिंह ने भाषा भुसण , आनंदविलास , प्रबोधचन्द्रोदय ग्रन्थ लिखे थे।
- 1678 में जामरूद अभियान के दौरान जसवंत सिंह की मृत्यु हो जाती है।
- जसवंत सिंह की मृत्यु के पश्चात औरंगज़ेब ने कहा था “कुफ्र का दरवाजा टूटा” (कुफ्र का अर्थ धर्म विरोधी होता है)।
- जसवंत की मृत्यु के बाद जसवंत सिंह की पत्नी को कैद कर दिल्ली ले जाता है। दिल्ली में जसवंत सिंह की पत्नी को रूपसिंह हवेली में रखा गया था।
अजीत सिंह (1699- 1724) –
- अजीत सिंह का जन्म 1679 को लाहौर में हुआ था।
- अजीत सिंह का पालन-पोषण गोराधाय द्वारा किया गया था।
- गोराराम का मारवाड़ में घूंसा नामक गीत गूंजा था।
- मेवाड़ के महाराणा राज सिंह द्वारा अजीत सिंह को सहायता व केलवा की जागीर दी जाती है।
- अजीत सिंह को जयदेव ब्राह्मण की सहायता से कालिंदी गाँव (सिरोही) पहुचाया जाता है।
- अजीत सिंह की रक्षा दुर्गादत्त राठौड़ करते है। अजीत सिंह दुर्गादत्त राठौड़ को ही देश दे देते है।
- अजीत सिंह को इतिहासकरों ने कान का कच्चा कहा है।
- अजीत सिंह ने मुहणोत नैणसी की हत्या करवायी थी।
- जगजीवन भट्ट ने अजीत सिंह के उप्पर ग्रन्थ लिखा था जिसका नाम अजीतोदय था।
- 1707 में अजीत सिंह के समय देबारी समझौता हुआ था। (देबारी समझौता में अजीतसिंह को मारवाड़, सवाई जयसिंह को आमेर का शासक बनाना व अमरसिंह द्वितीय की पत्री चंद्रकुँवरी का विवाह सवाई जयसिंह से करने व इनसे उत्पन्न संतान को आमेर का उत्तराधिकारी घोषित करने पर सहमति हुई।)
- अजीत सिंह की पुत्री इंद्रकुंवरी का विवाह 1715 में फर्रुखशियर के साथ हुआ था। यह विवाह अंतिम राजपूत मुगल विवाह था।
- अजीत सिंह की हत्या बख्तसिंह ने की थी। बख्तसिंह को मारवाड़ का दूसरा पितृहन्ता शासक कहा जाता है।
अभय सिंह (1724 – 1749) –
- 12 सितंबर 1730 को अभय सिंह के समय खेजड़ली की घटना हुई थी।
- अभय सिंह ने खेजड़ली के आन्दोलन में गिरधरदास को भेजा था।
- खेजड़ली आन्दोलन में अमृता देवी बिश्नोई सहित 363 लोगों ने हरे वृक्षों को बचाने के लिए अपना बलिदान दे दिया था। बिश्नोई समुदाय में इस बलिदान को साका/खड़ाना कहा जाता है। इन 363 लोगों में से 69 महिलाएं व 294 पुरुष थे।
- 12 सितम्बर को खेजड़ली दिवस मनाया जाता है।
- तेजादशमी को खेजड़ली मेला लगता है।
- खेजड़ली वृक्ष की पूजा आश्विन शुक्लदशमी (विजयादशमी के दिन) की जाती है।
विजय सिंह –
- विजय सिंह ने अपने नाम पर विजयशाही सिक्के जोधपुर (मारवाड़) में चलाये थे।
- विजयसिंह का विवाह गुलाब राय से हुआ था।
- गुलाबराय को वीर विनोद के लेखक श्यामलदास ने मारवाड़ की नूरजहाँ कहा है।
भीम सिंह –
- 1807 में भीम सिंह की मृत्यु हो जाती है।
मान सिंह –
- मान सिंह के लिए देव आयसनाथ ने भविष्यवाणी की थी की अगले शासक आप ही हुंगे।
- मान सिंह नाथ समुदाय के अनुयायी थे।
- मान सिंह ने जोधपुर में महा मंदिर बनवाया था। महा मंदिर नाथ समुदाय का प्रमुख केंद्र है।
- मान सिंह के समय 1807 में कृष्णा कुवरी को लेके गिन्गोली का युद्ध परबतसर (नागौर) में हुआ था। कृष्णा कुवरी मेवाड़ के शासक राजा भीमसिंह की पुत्री थी।
- कृष्णा कुवरी की अमीर खां पिण्डारी द्वारा जहर देकर हत्या कर दी गयी थी। अमीर खां पिण्डारी टोंक के संथापक था।
- 1818 में मान सिंह ने अंग्रेजों के साथ संधि की थी।
- मान सिंह ने मानप्रकाश पुस्तकालय जोधपुर में बनवाया था।
तख़्त सिंह –
- 1857 की क्रांति के समय जोधपुर के शासक थे।
- 8 सितम्बर 1857 के बिथौड़ा युद्ध में तख़्त सिंह के सेनापति ओनाड़ सिंह की मृत्यु हो गयी थी।
जसवंत सिंह II –
- जसवंत सिंह II के समत दयानंद सरस्वती जोधपुर आये थे।
- जसवंत सिंह II के दरबार की नन्ही भगतन (नन्ही जान) ने 30अक्टूबर 1883 को अजमेर में दयानंद सरस्वती को जहर दे दिया था।
सरदार सिंह –
- सरदार सिंह ने अपने पिता जसवंत सिंह II की याद में जसवंतथड़ा का निर्माण करवाया था। जसवंतथड़ा को राजस्थान का ताजमहल या मारवाड़ का ताजमहल कहा जाता है।
- सरदार सिंह के देहांत के बाद राजतिलक की परम्परा समाप्त हो गयी थी।
हनुमंत सिंह –
- हनुमंत सिंह मारवाड़ के अंतिम शासक थे।
- हनुमंत सिंह एकीकरण के समय जोधपुर के शासक थे।
- हनुमंत सिंह अपनी रियासत को पाकिस्तान में मिलाना चाहते थे।
Note –
- मारवाड़ का भागीरथ जगसिंह II को कहा जाता है।
- आधुनिक मारवाड़ का निर्माता उम्मेद सिंह को कहा जाता है। उम्मेद सिंह को मारवाड़ का शाहजहाँ भी कहा जाता है। उम्मेद सिंह ने उम्मेद भवन बनाया था। जिसे छीतर पैलेस भी कहते है।
- सरप्रताप ने कायलाना झील का निर्माण करवाया था।
- सरप्रताप महारानी विक्टोरिया स्वर्ण जुबली प्रोग्राम में शामिल होने गये थे।
राठौड़ वंश का इतिहास (बीकानेर का राठौड़ वंश)
बीकानेर को पहले जांगल प्रदेश नाम से जाना जाता था। जांगल प्रदेश को प्राचीन समय में कुरु जांगला ,जांगलू या माद्रेय जंगला कहा जाता था। जांगल प्रदेश के पूर्वी भाग को सपादलक्ष (वर्तमान में अजमेर जिला) कहा जाता था। राव बिका जिन्होंने बीकानेर शहर बसाया था वे
राव जोधा के पाचवें पुत्र थे।
राव बीका (1465-1504 ई.) –
- राव बिका राव जोधा के पुत्र थे।
- राव बिका ने बीकनेर जा कर करणी माता के आशीर्वाद से 1465 में राठौड़ वंश की स्थापना की थी। बीकानेर का प्राचीन नाम जांगल प्रदेश था।
- राव बिका ने अपनी राजधानी कोडमदेसर को बनाया था।
- राव बिका ने अप्रैल 1488 में नेरा जाट के सहयोग से बीकानेर बसाया था।
- राव बिका ने जोधपुर के शासक राव सुजा को पराजित कर राठौड़ वंश के सभी राजकीय चिन्हों को लेकर बीकानेर आ गये थे।
राव लूणकरण (1504-1526 ई.) –
- राव लूणकरण ने लूणकरणसर क़स्बा बसाया था। लूणकरणसर को राजस्थान का राजकोट कहा जाता है।
- राव लूणकरण ने लूणकरणसर तालाब का निर्माण कराया था।
- राव लूणकरण को बीठू सूजा के ग्रन्थ ‘राव जैतसी रो छन्द’ में ‘कर्ण‘ व ‘कलियुग का कर्ण‘ कहा है। ‘राव जैतसी रो छन्द’ में 401 छन्द है।
- ‘कर्मचन्द्रवंशोंत्कीकर्तनंक काव्यम्‘ में राव लूणकरण की तुलना कर्ण से की गयी है।
- राव लूणकरण की पुत्री बालाबाई का विवाह आमेर के राजा पृथ्वीराज के साथ हुआ था। पृथ्वीराज ने खानवा के युद्ध में राणा सांगा की सहायता की थी।
राव जैतसी (1526-1541 ई.) –
- 26 अक्टूबर,1534 ई. में राव जैतसी ने लाहौर के शासक कामरान को हराया था। इस युद्ध का उल्लेख बीठू सूजा के ग्रन्थ ‘राव जैतसी रो छन्द में’ मिलता है।
- 1541 ई. में पाहेवा / साहवा का युद्ध राव जैतसी व मालदेव के मध्य फलोदी (जोधपुर) में हुआ था। इस युद्ध में राव जैतसी की मृत्यु हो गयी थी।
- पाहेवा / साहवा युद्ध का वर्णन बीठू सूजा के ‘राव जैतसी रो छन्द’ में मिलता है।
- राव जैतसी ने 17 मार्च 1527 में खानवा के युद्ध में अपने पुत्र राव कल्याणमल को राणा सांगा की सहायता को भेजा था। खानवा का युद्ध भरतपुर में हुआ था।
राव कल्याणमल (1544-1574 ई.) –
- राव जैतसी की मृत्यु के बाद राव कल्याणमल शेरशाह सूरी (फरीद) के पास सहायता मागने जाता है जिसके पश्चात 5 जनवरी 1544 को शेरशाह सूरी व मालदेव के मध्य युद्ध होता है। इस युद्ध में मालदेव भाग जाता है और राव कल्याणमल को बीकानेर का शासक बनाया जाता है।
- राव कल्याणमल बीकानेर के प्रथम शासक थे जिन्होंने अफगानों के साथ विवाहिक संबंध स्थापित किये थे।
- शेरशाह सूरी जब राजस्थान आया तो उसकी सहयता राव कल्याणमल व मेड़ता के वीरमदेव ने की थी।
- 1570 ई. राव कल्याणमल ने नागौर दरबार में मुगलों की अधीनता स्वीकार की थी। नागौर दरबार अहिच्छत्रपुर में लगा था।
- पृथ्वीराज व रायसिंह राठौड़ राव कल्याणमल के पुत्र थे।
- अकबर ने पृथ्वीराज राठौड़ को गागरोंण दुर्ग दे दिया था। गागरोंण दुर्ग झालावाड़ में है। गागरोंण दुर्ग ओदक दुर्ग है जिसे जल दुर्ग कहा जाता है।
- गागरोंण दुर्ग में पृथ्वीराज राठौड़ ने ‘बेलि क्रिसन रूकमणी री’ग्रन्थ लिखा था। यह ग्रन्थ डिंगल भाषा में लिखा गया है। यह ग्रन्थ उत्तरी मारवाड़ का प्रसिद्ध ग्रन्थ है।
- कवि दुरसा आढ़ा ने ‘बेलि क्रिसन रूकमणी री’ ग्रन्थ को पाँचवा वेद एवं 19वाँ पुराण कहा है।
- इटली के कवि डॉ. टेस्सीटोरी ने पृथ्वीराज राठौड़ को ‘डिंगल का होरेस’कहा है।
- कन्हैयालाल सेठिया ने पृथ्वीराज राठौड़ को पीथल कहा है।
महाराजा रायसिंह (1574-1612 ई.) –
- 1572 ई. में कल्याणमल के पुत्र रायसिंह राठौड़ को अकबर द्वारा जोधपुर का प्रशाशक नियुक किया गया था। रायसिंह राठौड़ को चन्द्रसेन के खिलाफ़ भेजा गया था।
- रायसिंह राठौड़ को इतिहासकार मुंशी देवीप्रसाद ने ‘राजपूताने का कर्ण’ कहा है।
- रायसिंह राठौड़ को अकबर ने महाराजा की पदवी प्रदान की।
- रायसिंह राठौड़ को ही मुग़ल दरबार का स्तंभ कहा जाता है।
- रायसिंह राठौड़ ने अपनी पुत्री का विवाह शहजादे सलीम के साथ किया था।
- रायसिंह राठौड़ को अकबर द्वारा 4000 की मनसबदारी दी गयी थी व जहाँगीर द्वारा 5000 की मनसबदारी दी गयी थी।
- रायसिंह राठौड़ अकबर का दूसरा सर्वाधिक विश्वासपात्र राजपूत शासक था।
- रायसिंह राठौड़ के समय बीकानेर चित्रकला की शुरुवात हुई थी।
- रायसिंह राठौड़ के समय भागवत पुराण ग्रन्थ मिला था।
- रायसिंह राठौड़ ने “ज्योतिष रत्नमाला” नामक ग्रन्थ लिखा था।
- रायसिंह राठौड़ ने “रायसिंह महोत्सव” की शुरुवात की थी।
रायसिंह राठौड़ को ‘कर्मचन्द्रवंशोकीर्तनकंकाव्यम’में राजेन्द्र की उपाधि प्राप्त है। - रायसिंह राठौड़ बीकानेर के राठौड़ वंश के प्रथम शासक थे जिन्होंने ‘महाराजाधिराज‘ और महाराजा की उपाधियाँ धारण की थी।
- सन् 1594 में रायसिंह राठौड़ ने जूनागढ़ किले का निर्माण करवाया था। जूनागढ़ किले को ज़मीन का जेवर व राती घाट का किला कहा जाता हैं।
- रायसिंह राठौड़ ने जूनागढ़ किले को 1589 से 1594 तक अपने प्रधानमंत्री कर्मचंद पंवार की देख रेख में बनवाया था।
- जूनागढ़ किले के भीतर रायसिंह राठौड़ ने एक प्रशस्ति भी लिखवाई जिसे‘रायसिंह प्रशस्ति‘ कहा जाता हैं।
- जूनागढ़ किले के प्रवेश द्वार पर सूरजपोल के बाहर जयमल राठौड़ व पत्ता सिसोदिया की हाथी पर सवार पाषाण मूर्तियाँ रायसिंह राठौड़ द्वारा स्थापित करवाई गयी थी।
- जूनागढ़ किले में राजस्थान राज्य की प्रथम लिफ्ट स्थित है।
- 1612 में रायसिंह की बुरहानपुर (महाराष्ट्र) में हुई थी।
महाराजा दलपत सिंह (1612-13 ई.) –
- महाराजा रायसिंह ने अपनी राज्य की बागडोर अपने प्रधानमंत्री कर्मचंद पंवार को सौपी थी।
- कर्मचंद पंवार दलपत सिंह को राजा बनाने का षड्यंत्र रचता है, जिससे क्रधित होकर सूरसिंह जहाँगीर के पास चला गया।
महाराजा सूरसिंह (1613-1631 ई.) –
- जहाँगीर ने सूरसिंह को बीकानेर का राजा बनाया था।
- जहाँगीर के समय जब खुर्रम ने विद्रोह किया तो जहाँगीर ने खुर्रम के विरुद्ध सूरसिंह को भेजा था, इस विद्रोह में खुर्रम असफल रहा था।
- सूरसिंह ने दो मुगल शासक जहाँगीर तथा शाहजहाँ के समय सेवाएं प्रदान की थी।
महाराजा कर्णसिंह (1631-1669 ई.) –
- सूरसिंह के पश्चात उनके पुत्र कर्णसिंह राजा बनाया गया था।
- कर्णसिंह को औरंगजेब द्वारा जांगलधर बादशाह की उपाधि प्रदान की गयी थी।
- कर्णसिंह ने करणी माता का मंदिर बनवाया था।
- 1644 ई. में बीकानेर के कर्णसिंह व नागौर के अमरसिंह राठौड़ के मध्य‘मतीरा री राड़‘नामक युद्ध हुआ था। इस युद्ध में अमर सिंह राठौड़ विजयी रहे थे।
- कर्णसिंह ने विद्वानों के सहयोग से साहित्यकल्पदुम ग्रन्थ की रचना की थी।
- कर्णसिंह के आश्रित विद्वान गंगानन्द मैथिल ने कर्णभूषण एवं काव्यडाकिनी नामक ग्रन्थों की रचना की थी।
महाराजा अनूपसिंह (1669-1698 ई.) –
- अनूपसिंह ने दक्षिण में बीजापुर- गोलकुंडा अभियान के तहत मराठों के खिलाफ़ की गयी कारवाही से मुग़ल शासक औरंगजेब ने प्रसन्न होकर अनूपसिंह को ‘महाराजा‘ एवं ‘माही भरातिव‘ की उपाधि से सम्मानित किया था।
- अनूपसिंह प्रकाण्ड विद्वान, कूटनीतिज्ञ, विद्यानुरागी एवं संगीत प्रेमी शासक थे।
- अनूपसिंह ने अनूपविवेक, काम-प्रबोध, अनूपोदय आदि संस्कृत ग्रन्थों की रचना की थी।
- अनूपसिंह के समय को बीकानेर चित्रकला का स्वर्ण काल कहा जाता हैं।
- अनूपसिंह के समय ही आनंदराम ने गीता को राजस्थानी भाषा में अनुवाद किया था।
- अनूपसिंह के समय में उस्ता कला लाहौर से आई थी। उस्ताकला के कलाकारों को उस्ताद कहा जाता था।
- उस्ताकला ऊटों की खाल पर की जाती हैं। उस्ताकला बीकानेर जिले की प्रसिद्ध हैं।
- बीकानेर में ऊट महोत्सव मनाया जाता हैं।
- उस्ताकला के प्रसिद्ध कलाकार हिसामुद्दीन उस्ता थे। इन्होने अपने पिता से यह कला सीखी थी। हिसामुद्दीन उस्ता को पद्मश्री पुरूस्कार से सम्मानित किया गया था।
- उस्ताकला के वर्तमान कलाकार हनीब उस्ता व इलाही बक्श हैं।
- अनूपसिंह ने अपने नाम पर अनूप गढ़ बनवाया था। अनूप महल में हिण्डोला झूला हैं। अनूप गढ़ का प्राचीन नाम चुंघेर था।
- अनूप महल में बीकानेर के राजाओं का राजतिलक होता था।
महाराजा स्वरूपसिंह (1698-1700 ई.) –
- अनूपसिंह की मृत्यु के पश्चात उनके ज्येष्ठ पुत्र स्वरूपसिंह मात्र नौ वर्ष की आयु में बीकानेर की गद्दी में बैठ गए थे।
- स्वरूपसिंह के औरगांबाद तथा बुरहानपुर में नियुक्त होने के कारण बीकानेरका सभी राजकार्य उनकी माता सिसोदणी संभालती थी।
महाराजा सुजानसिंह (1700-1735 ई.) –
- स्वरूपसिंह के पश्चात सुजानसिंह बीकानेर के राजा बन थे।
- महाराजा सुजानसिंह ने दक्षिण में रहकर मुगलों की सेवा की थी।
- महाराजा सुजानसिंह के समय जोधपुर के महाराजा अजीत सिंह ने बीकानेर पर आक्रमण किया परन्तु इस आक्रमण का जवाब ठाकुर पृथ्वीराज तथा हिन्दूसिंह (तेजसिंह) ने डटकर दिया था, जिस कारण जोधपुर की सेना को वापस जोधपुर जाना पड़ा था।
- मथेरण जोगीदास ने वरसलपुर गढ़ विजय नामक ग्रंथ की रचना की थी। वरसलपुर गढ़ विजय का दूसरा नाम ‘ महाराजा श्री सुजानसिंह जी रौ रासौ ‘ है।
महाराजा जोरावर सिंह (1736-1746 ई.) –
- इतिहासकार मुंशी देवी प्रसाद के अनुसार जोरावर सिंह संस्कृत भाषा के उच्च कवि थे।
- जोरावर सिंह के दो ग्रंथ वैद्यकसागर तथा पूजा पद्धति वर्तमान में बीकानेर के पुस्तकालय में है।
- जोरावर सिंह की माता सीसोदिणी ने बीकानेर में चतुर्भुज मंदिर का निर्माण करवाया था।
महाराजा गजसिंह (1746-1787 ई.) –
- महाराजा गजसिंह के समय बीदासर के निकट दड़ीबा गाँव में तांबे की खान की ख़ोज हुई थी।
- 1757 ई. में गजसिंह ने नौहरगढ़ की नींव रखी थी।
- महाराजा गजसिंह को मुग़ल शासक अहमदशाह ने ‘माहीमरातिब’ की उपाधि प्रदान की थी।
- महाराजा गजसिंह की प्रशंसा में चारण गाडण गोपीनाथ ने ‘महाराज गजसिंह रौ रूपक’ ग्रंथ की रचना की थी।
- सिंढायच फतेराम ने ‘महाराज गजसिंह रौ रूपक’ तथा ‘महाराज गजसिंह रा गीतकवित दूहा’ ग्रंथों की रचना की थी।
- गजसिंह के पश्चात महाराजा राजसिंह बीकानेर के शासक बने थे।
- महाराजा राजसिंह की मृत्यु के पश्चात इनके सेवक मंडलावत संग्राम सिंह ने महाराजा राजसिंह की जलती चिता में आहुति दे दी थी।
- राजसिंह के पश्चात प्रतापसिंह बीकानेर के राजा बने परन्तु इनका शासनकाल अल्प समय तक ही रहा था।
महाराजा सूरतसिंह (1787-1828 ई.) –
- 1799 ई. में सूरतसिंह ने सूरतगढ़ का निर्माण करवाया था।
- दयालदास ने ‘बीकानेर के राठौड़ों री ख्यात’ नामक ग्रन्थ लिखा हैं।
- 1805 ई. में महाराजा सूरतसिंह ने अमरचंद सुराणा के नेतृत्व में भटनेर (हनुमानगढ़) में मगलवार को आक्रमण किया था व अपना अधिकार कर लिया था। मंगलवार को’ अधिकार करने के कारण भटनेर का नाम बदलकर हनुमानगढ़ रखा दिया गया था।
- महाराजा सूरतसिंह ने भटनेर के जाप्ता भाटी को पराजित किया था।
- 1807 ई. में हुए गिंगोली के युद्ध में बीकानेर के शासक सूरतसिंह ने जयपुर की सेना की सहायता की थी।
- 1814 ई. में महाराजा सूरतसिंह ने चुरू पर आक्रमण किया था। इस युद्ध में चुरू के शिवसिंह के गोला बारूद ख़त्म होने के बाद चाँदी के गोलेदागे थे।
- 1818 ई. में महाराजा सूरतसिंह ने ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ संधि की थी। यह संधि सूरतसिंह की और से ओझा काशीनाथ ने सम्पन्न की थी।
महाराजा रतनसिंह (1828-1851 ई.) –
- महाराजा सूरतसिंह के पश्चात इनके ज्येष्ठ पुत्र रतनसिंह बीकानेर के राजा बने थे।
- 1829 ई. में बीकानेर व जैसलमेर के मध्य वासणपी का युद्ध हुआ था इस युद्ध में बीकानेर राज्य को पराजय का सामना करना पड़ा था।
- वासणपी के युद्ध में अंग्रेजों ने मेवाड़ के महाराणा जवानसिंह को मध्यस्थ बनाकर दोनों पक्षों में समझौता करवाया।
- मुग़ल शासक अकबर द्वितीय ने रतनसिंह को ‘माहीमरातिब’ का खिताब प्रदान किया था।
- रतनसिंह द्वारा राजरतन बिहारी का मंदिर का निर्माण करवाया गया था।
- बीठू भोमा ने रतनविलास व सागरदान करणीदानोत ने रतनरूपक नामक ग्रंथ की रचना की थी।
महाराजा सरदारसिंह (1851-1872 ई.) –
- सरदारसिंह द्वारा 1854 ई. में सती प्रथा व जीवित समाधि प्रथा पर रोक लगवा दी थी।
- महाराजा सरदारसिंह ने 1857 की क्रांति में राजस्थान के हांसी, हिसार से बहार जाकर पंजाब के बड़ालू नामक स्थान पर अंग्रेजों की सहायता की थी।
- 1857 की क्रांति में सहायता करने के बाद अंग्रेजों ने महाराजा सरदारसिंह को हनुमानगढ़ की टिब्बी तहसील में 41 गाँव दिए थे।
- सरदारसिंह द्वारा महाजनों से लिया जाने वाला बाछ कर माफ कर दिया गया था।
- सरदारसिंह ने बीकानेर के सिक्कों से मुगल बादशाह का नाम हटाकर महारानी विक्टोरिया का नाम अंकित करवाया था।
महाराजा डूंगरसिंह (1872-1887 ई.) –
- महाराजा सरदारसिंह के पुत्र न होने के कारण कुछ समय टस्क बीकानेर राज्य का कार्य कप्तान बर्टन की अध्यक्षता वाली समिति ने किया था।
- वायसराय लॉर्ड नॉर्थब्रुक की स्वीकृति से कप्तान बर्टन ने डूंगरसिंह को बीकानेर की गद्दी में बैठाया था।
- डूंगरसिंह ने बीकानेरी भुजिया की शुरुवात की थी।
- डूंगरसिंह ने अंग्रेजों के साथ नमक समझौता किया था।
- डूंगरसिंह ने बीकानेर किले का जीर्णोद्वार करवाया तथा इसमें सुनहरी बुर्ज, गणपति निवास, लाल निवास, गंगा निवास आदि महल बनवाये थे।
महाराजा गंगासिंह (1887-1943 ई.) –
- गंगासिंह ने अपनी शिक्षा अजमेर के मेयो कॉलेज से की थी।
- गंगासिंह के लिए शिक्षक पंडित रामचंद्र दुबे को नियुक्त किया गया था।
- गंगासिंह ने देवली छावनी (टोंक) में अपनी सैनिक शिक्षा भी प्राप्त की थी।
- गंगासिंह के शासनकाल में विक्रम संवत 1956 (1899-1900 ई.) में भीषण अकाल पड़ा जिसे छप्पनिया अकाल भी कहते हैं।
- गंगासिंह ने गंगा नगर शहर बसाया था। गंगा शहर का स्थापना दिवस 26 अक्टूबर को होता हैं। गंगा नगर को पहले रामनगर (रामू जाट की ढाणी ) कहा जाता था।
- 1921 में गंगा सिंह नरेन्द्र मंडल के प्रथम चांसलर बने थे। यह नरेंद्र मंडल नाम महाराजा जयसिंह ने दिया था।
- 1927 में गंगासिंह ने नहर निकली जिसका नाम गंग नहर था। यह नाहर फ़िरोजपुर से हुसैनीवाला लायी गयी थी। यह नहर 129 किलोमीटर लम्बी नहर हैं।
- गंग नहर विश्व की पहली सिचाई नहर हैं।
- गंगा सिंह को आधुनिक भारत व राजस्थान का भागीरथ कहा जाता हैं।
- गंगासिंह 1930,1931 व 1932 के गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने गये थे। यह सम्मेलन लन्दन में हुए थे।
- गंगासिंह ने ऊटों की सेना भेजी थी जिसको गंगा रिसाला कहा जाता था। यह सेना चीन भेजी गयी थी। चीन ने इसके बाद गंगासिंह को एक चीनी युद्ध पदक दिया था।
- गंगा सिंह ने अपनी पिता लाल सिंह की याद में लाल गढ़ पैलेस बनवाया था। लाल गढ़ पैलेस लाल पत्थर से बना है।
- गंगा सिंह के समय में इटली से टेस्सीटोरी आया था।
- नथमल जोशी का धोरां रो धोरी उपन्यास टेस्सीटोरी के जीवनी पर है , इस उपन्यास में नथमल जोशी ने टेस्सीटोरी को टिब्बों का मसीहा कहा हैं।
- करणी माता के प्रवेश द्वार गंगा सिंह द्वारा भेट किये गए थे।
- गंगासिंह ने गोगाजी के मंदिर को आधुनिक स्वरूप दिया था।
- गंगासिंह के शासनकाल में अंग्रेजों की सहायता से ‘कैमल कोर’ का गठन किया गया जो ‘गंगा रिसाल’ के नाम से भी जानी जाती थी।
महाराजा शार्दुल सिंह (1943-1949 ई.) –
- महाराजा शार्दुल सिंह बीकानेर के अंतिम शासक थे।
- महाराजा शार्दुल सिंह प्रथम शासक थे जिन्होंने एकीकरण के समय विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। महाराजा शार्दुल सिंह ने 7 अगस्त, 1947 को ‘इस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ पर हस्ताक्षर किए व भारत में विलय हो गए थे।