स्थान -जैसलमेरनिर्माण - 1155 ई.निर्माणकर्ता - रावल जैसल भाटी
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श्रेणी - धान्वन दुर्ग (मरु दुग) जैसल के पुत्र और उत्तराधिकारी शालिवाहन द्वितीय के द्वारा जैसलमेर दुर्ग का सम्पूर्ण निर्माण पूर्ण करवाया गया था !
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आकृति – जैसलमेर दुर्ग त्रिकूटाकृति का है। जैसलमेर दुर्ग अंगड़ाई लेते सिंह और तैरते हुए जहाज के समान दिखाई देता है
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उपनाम – सोनारगढ़ एवं सोनगढ़ का किला (सोनार का किला) ,उत्तरी पश्चिमी सीमा का प्रहरी स्वर्ण गिरी
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इस दुर्ग के बारे में कहावत प्रचलित है ! कि यहां पत्थर के पैर और लोहे का शरीर और काठ का घोडा लेके ही पहुंचा जा सकता है
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यह दुर्ग एक के ऊपर एक पत्थर रख रख कर बनाया गया है ! जो इसकी स्थापत्य कला की एक प्रमुख विशिष्टता है
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सुबह-शाम सूर्य की किरणें दुर्ग में स्थित लक्ष्मीनारायण पर पड़ती है यह वाकई में सोने के समान चमकता है ! यह गहरे पीले रंग के बड़े-बड़े पत्थरों से निर्मित है
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यह दुर्ग राजस्थान में सर्वाधिक बुर्जों वाला दुर्ग है , इसमें 99 बुर्ज है
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दुर्ग के चारों ओर घघरानुमा परकोटा बना हुआ है, जिसे ‘कमरकोट’ तथा ‘पाडा’ कहा जाता है ! इस दुर्ग को बनाने में चूने का प्रयोग बिल्कुल भी नहीं किया गया
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अक्षय पोल दुर्ग का प्रमुख प्रवेश द्वार हैं
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